Book Title: Kalpasutra Moolpath
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Bhimsinh Manek Shravak Mumbai

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Page 88
________________ कप० ॥४ ॥ पुणरवि लोगंतिएहिं जिअकप्पिएहिं देवेहिं तं चेवं सत्वं नाणियत्वं, जाव दाणं दाश्याणं परिनाश्ता ॥ १७३ ॥जे से वासाणं पढमे मासे उच्चे परके-सावणसुद्धे, तस्स णं सावणसुझस्स हीपरके णं पुवाहकालसमयंसि उत्तरकुराए सीयाए सदेवमणुासुराए पारिसाए अणुगम्ममाणमग्गे जाव बारवईए नयरीए मज्जंमज्जेणं निग्गबइ, निग्गनित्ता जेणेव रेवयए नाणे, तेणेव उवागबइ, उवागवित्ता असोगवरपायवस्स अहे । सीयं गवे, गवित्ता सीयार्ड पच्चोरुहर, पञ्चोरुहित्ता सयमेव आनरणमल्लालंकारं ।। मुयइ, उमुश्त्ता सयमेव पंचमुध्यिं लोयं करेइ, करित्ता उठेणं नत्तेणं अपाणएणं चित्तानकत्तणं जोगसुवागएणं एगं देवदूसमादाय एगेणं पुरिससहस्सेणं सम्मुिमेनवित्ता अगारा अणगारियं पवइए ॥ १७४ ॥ अरदा णं अरिहनेमी चउपन्नं राइंदियाई ॥४ ॥ १ समणु, Jan Education International For Private Personal use only www.jainelorary.org

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