Book Title: Kalpasutra Moolpath
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Bhimsinh Manek Shravak Mumbai

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Page 132
________________ कल्प बारसो. ॥६५॥ नंगी।अविणं इच केइ पंचमए थेरे वा थेरिया वा अन्नेसिं वा संलोए सपडिज्वारे, एवं क- प्पइ एगयां चिहित्तए।एवं चेव निग्गंथीए अगारस्स य नाणियवं॥३॥वासावासं पङोसवियाणं नो कप्पक्ष निग्गंथाण वा निगंथीण वा अपरिमएणं अपरिमयस्स अहाए असणं वारपाणं वाश्खाइमं वा३साइमं वाधजाव पडिगादित्तए॥४॥से किमाहुते?श्चा * परोअपरिमएलुजिजा,श्वा परोन जुजिजा ॥४॥ वासावासं पजोसवियाणं नो कप्पश् । निग्गंथाण वा निग्गंधीण वा उदनल्लेण वा ससिणिण वा कारणं असणं वा २ पाणं वा खाइमं वा३साइमं वाधहारित्तए॥४॥से किमाहुते?सत्त सिणेहाययणा पमत्ता, तंजहा-पाणी१,पाणिलेदार,नहा३,नदसिदाम,लमुदाय,अहरोहा६,उत्तरोठाशअद पुण एवं जाणिजा-विगउँदगेमे काए बिन्नसिणेदे,एवं से कप्पइ असणं वारपाणं वा श्खाइमं वा ३. साइमं वादारित्तए॥४३॥वासावासं पजोसवियाणं इह खलु निग्गंथाण वा निग्गंधीणं - वा इमाइं असुहुमाई,जाइं उनमवेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा अनिकणं अनिकणं| ॥६४॥ Jain Educat onal For Private & Personal use only Is j ainelibrary.org

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