Book Title: Kalpasutra Moolpath
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Bhimsinh Manek Shravak Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 125
________________ ******** ** ॥१७॥वासावासं पङोसवियाणं अगाणं एवं बुत्तपुत्वं नवइ, अहो नंते! गिलाणस्स, * से य पुचियत्वे-केवश्एणं अहो? से वएजा-एवएणं अहो गिलाणस्स, जं से पमाणं वयश्से । य पमाण चित्तवे, सेय विन्नविजा, से य विनवेमाणे लनिजा, से य पमाणपत्ते होन अलादि-श्य वत्तवं सिआसे किमाइते, एवइएणं अहो गिलाणस्स, सिया णं एव वयंत परो वश्जा-पडिगादेहं अजो पबा तुमंजकसि वा पांदिसि वा,एवं से कप्पइ पडिगाहित्तए नो से कप्पर गिलाणनीसाए पडिगादित्तए॥ १७ ॥वासावासं पजो सविआणं अविणं थेराणं तहप्पगाराइंकुलाइं कुडाइंपत्तिाइ थिजाइंवेसासियाइं समयाइंबहुमयाइंअणुमयाइं नवंति जई, से नो कप्पश् अदरकु वश्त्तए "अवि ते आजसो! इमं वा इमं वा” से . किमाहु नंते?, सड्ढी गिही गिएदवा, तेणियंपि कुजा ॥१॥ वासावासं पजोस वियरस निच्चन्नत्तियस्स निरकुस्स कप्पइ एगं गोअरकालंगाहावश्कुलं नत्ताए वा पाणाए वा निस्कमित्तए वा पविसित्तए वा, नन्नबायरियवेयावच्चेण वा एवं नवज्कायवेयावच्चेण वा, तव १ से य वइज्जा (क० को०); २ दाहिसि वा इति पाठानारे; ३ तत्थ (क० सु० क० को०) *** * * * For Private & Personal Use Only ainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142