Book Title: Kalpasutra Moolpath
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
View full book text
________________
अ आमंतंति आमंतित्ता तो पना एहाया कयवलिकम्मा कयकोउयमंगलपायबित्ता सुझप्पावेसाई मंगलाइं पवराई वाई परिहिया अप्पमहग्यानरणालंकियसरीरा नोअ
णवेलाए नोअणमंमवंसि सुदासणवरगया तेणं मित्त-नाइ-नियय-संबंधि-परिजणेणं नाय* एहिं खत्तिएदि सहिं तं विनलं असणं पाणं खाश्मं साश्मं आसाएमाणा विसाएमाणा|
परिनाएमाणा परिचुंजेमाणा वा एवं विदरंति ॥ १७३ ॥ जिमिअनुत्तुत्तरागया वि अ णं समाणा आयंता चुका परमसुईनूआ तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं नायए खत्तिए य विनलेणं पुप्फ-गंध-वन-मल्ला-लंकारेणं सक्कारिति संमाणिति, सक्कारित्ता संमाणित्ता तस्सेव मित्त-नाश्-नियय-सयण-संबंधि-परियणस्स नायाणं खत्तिण य पुरज एवं वयासी ॥ १०४ ॥ पुविपि णं देवाणुप्पिया! अम्दं एयंसि दारगंसि गानं
१ चोक्खा. २ सकारेंति. ३ संमाणेति.
888ERRRRRRRR**********
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142