Book Title: Kalpasutra Moolpath
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Bhimsinh Manek Shravak Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 66
________________ कल्प० ॥ ३१ ॥ Jain Education **** महुरेण य मणहरेणं जयजयसद्दघोसमी सिएणं मंजुमंजुला घोसेण य पडिबुज्ऊमाणे बारसो. पडिबुज्ऊमाणे, सबिड्डी ए सबजुईए सबबलेणं सववादणेणं सवसमुदपणं सङ्घायरेणं सबविनूईए सब विनूसार सङ्घसंनमेणं सबसंगमेणं सवपगईदिं सघनाडएहिं सवतालाय रेहिं सरोदेणं सवपुप्फ-गंध-मल्ला-लंकार - विनूसार सबतुडियसद्दसन्निनाएणं महया इड्डीए महया जुईए महया बलेणं महया वाहणेणं महया समुदपणं महया वरतुडिय-जमगसमग-प्पवाइएणं संख-पणव- पडद-नेरि-कल्ल रि- खरमुदि-हुमुक्क-झुंड दिनिग्घोसना इयरवेणं कुंमपुरं नगरं मज्छंमज्जेणं निग्गचर, निग्गचित्ता जेणेव नायसंमवणे नाणे जेणेव सोगवरपायवे तेणेव नवागढ, वागवित्ता सोगवरपायवस्स दे सीयं ठावेइ, गवित्ता सीया पचोरुद, पच्चरुदित्ता सयमेव आज रणमल्वालंकारं मुखइ, मु१ सब्बड्डीए (क० कौ०, क० लतायां. १ आपुच्छिजमाणे (क० कि०) २ सव्वावरोहेणं ( क०सु०, क० कौ० ) For Private & Personal Use Only ॥ ३१ ॥ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142