Book Title: Kalpasutra Moolpath
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Bhimsinh Manek Shravak Mumbai

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Page 84
________________ कल्प० ॥ ४० ॥ ****** | निरावरणे जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने, जाव जाणमाणे पासमाणे विदरइ ॥ १५॥ | पासस्स एां पर हर्ज पुरिसादाणीयस्स अह गणा ग्रह गणहरा हुवा, तंजदा-सुने य १ - घोसे य २, वसिठे ३ बंजयारि य । सोमे ५ सिरिदरे ६ चेव, वीरजदे ७ जसेवि य ॥ १६० ॥ पासस्स णं परदर्ज पुरिसादाणी यस्स 'अदिस पासुरकार्ड सोलस समण साहस्सी नक्कोसिच्या समणसंपया हुवा || १६१ ॥ पासस्स रद पुरिसादाणियस्स 'पुप्फचूला 'पामुरकार्ड हत्ती प्रकियासादस्सी नक्कोसिया प्रकियासंपया हुवा ॥ १६२ ॥ पासस्स एणं रद पुरिसादाणी यस्स 'सुवय' पामुकाणं समपोवासगाणं एगा सेयसादस्सी चनसहिं च सदस्सा नक्कोसिच्या समणोवासगाणं संपया दुखा ॥ १६३ ॥ पासस्स एणं रद पुरिसादाणी यस्स ' सुनंदा' पामुरकाणं समगोवा सियाणं तिमि सयसादस्सी सत्तावीसं च सदस्सा नक्कोसिया समणोवासियाणं १ सयसाहस्सी ( क०सु० ) Jain Educationonal For Private & Personal Use Only बारसो. ॥ ४०॥ 1982 jainelibrary.org

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