Book Title: Kalpasutra Moolpath
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
View full book text
________________
कल्प
बारसो
॥२५॥
। केहिं नाश्नल्लेहिं नाश्सुक्केहिं सवत्तुगनयमाणसुदेहिं जोयणचायणगंधमल्लेहिं ववगय
रोग-सोग-मोद-नय परिस्समा, जं तस्स गनस्स दिशं मियं पलं गनपोसणं तं देसे अ काले अ आहारमाहारमाणी, विवित्तमनएदि सयणासणेहिं परिक्कसुदाए मणोऽणुकूलाए विदारनूमीए, पसबदोदला संपुमदोदला संमाणियदोहला अविमाणिअदोदला बुजिन्नदोहला ववणीअदोहला, सुहं सुदेणं आसइसय चिछ निसीअश् तुयदृश विदर सुदंसुदेणं तं गन्नं परिवद ॥ ए५॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे जगवं महावीरे जे से गिम्दाणं पढमे मासे उच्चे पके चित्तसुझे तस्स णं चित्तसुझस्स तेरसी दिवसे णं नवएडं मासाणं बहुपडिपुरमाणं अच्छमाणं राइंदियाणं विश्वंताणं उच्चछाणगएसु गहेसु, पढमे चंदजोए, सोमासु दिसासु वितिमिरासु विसुझसु, जइएसु सवसनणेसु, पयादिणाणुकूलंसि नूमिसप्पिसि मारुयंसि पवायंसि, निप्फन्नमेश्णीयंसि ।
॥१५॥
JainEducation international
For Private
Personel Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142