Book Title: Kalpasutra Moolpath
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
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कल्प
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॥२०॥
सुविणलकणपाढए सद्दाविति ॥६६॥ तएणं ते सुविणलकणपाढगा सिइबस्स खत्ति- | बारसो. अस्स कोमुंबिअपुरिसेहिं सहावित्रा समाणा हन्तुछ जाव-हियया एहाया कयबलिकम्मा कयकोनअमंगलपायबित्ता सुझप्पवेसाइं मंगलाई वबाइं पवराइं परिहिआ . अप्पमदग्घानरणालंकियसरीरा सिव्य-हरिआलिया-कयमंगलमुशाणा सरहिं सएहिं । गेदेहिंतो निग्गति, निग्गचित्ता खत्तियकुंभग्गामं नगरं मऊमज्केणं जेणेव सि-वस्स रमो नवणवरवमिसगपडिज्वारे तेणेव उवागबंति, उवागचित्ता लवणवरवमिंसगपडिज्वारे, एगो मिलंति, मिलित्ता जेणेव बाहिरिआ उवठाणसाला, जेणेव सिध्ने । खत्तिए, तेणेव उवागबंति, उवागबित्ता करयलपरिग्गदिशं जाव अजलिं कट्ट, सिचं खत्तिअंजएणं विजएणं वझाविति ॥६॥ तएणं ते सुविणलकणपाढगा सिबेणं
*॥॥ *रमा वंदिय-पृश्य-सक्कारिअ-सम्माणि समाणा पत्तेअं पत्तेअं पुवन्ननेसु नदासणेसु
१ दूर्वावाची देश्यः शब्द, २ अच्चिय-बंदिय-माणिभ-पूइआ (क० कि०)
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Jain Ede
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