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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
का सौदा फिर याद आया । हममें से राजेन्द्र ने बात चलाई। निर्धारित अवधि की तारीख राजेन्द्र को बहुत नजदीक लगी। खुद आगरा जाये । स्वजन यदि वहां से मुम्बई गये हों तो खुद को मुम्बई जाना पड़े। अन्त में मुश्किल से तारीख तय हो गई। स्थान भी तय हो गया । 12 तारीख को राजेन्द्र को एक लाख रूपये नकद लेकर कमतरी चन्द्रपुर आने का तय हुआ।
हमें बातचीत की सफलता से अपनी मुक्ति की आशा लगी। चार लाख का सौदा एक लाख में निपटा, इसमें हमको हमारी श्रद्धेय मूर्ति का विश्वास और नवकार के जाप का अदृश्य हाथ ही कारण लगा ।
आठ तारीख को ठाकुर ने अपने हाथ से रोटियां बनाकर हमे खाना खिलवाया। राजेन्द्र को उन्होंने सौ रूपये एवं थोड़े खुले पैसे (रेजगी) किराये के लिए दिये। दोनों पक्षों की ओर से शपथ - विधि हुई । ठाकुर ने लाख रूपये में अपहतो को छोड़ने एवं कोई भी गलत खेल नहीं खेलने की सौगंध ली। राजेन्द्र की ओर से धोखा हुआ तो ठाकुर ने सुरेश, नवीन और चीनुभाई पर बन्दुक की नाल से गोली दागकर खतम करने का मजबूत निर्णय भी बताया। राजेन्द्र ने भी वचन दिये। इस बात से पुलिस को अनजान रखकर, दी गई अवधि पर हाजिर होने का प्रण लिया, और हम तीनों की आंसुभरी विदाई लेकर राजेन्द्र फिरौती की रकम लेने अकेला रवाना हुआ।
सौदे में दो दिन का विलम्ब हुआ। इतनी देर में तो डाकुओं को गिरफ्तार करने हेतु चंबल के चारों ओर एक ओर हजार पुलिस की फौज सजग हो गयी । ठाकुर लाख के स्वप्न देख रहा था, किन्तु प्रभु भक्ति की शक्ति कोई अलग ही चमत्कार बताना चाहती थी। 28 दिसंबर को हमने चंबल की घाटियां देखीं। आज 8 जनवरी थी । अर्थात् चंबल में हमारा ग्यारहवां दिन था। आज दोपहर डाकुओं ने राजेन्द्र को आगरा जाने के लिए छोड़ दिया था, किन्तु इस प्रकार उन्होंने एक प्रकार का संकट मोल लिया था। चंबल की चारों ओर लगाई गई पुलिस देख ले तो पूरी बाजी
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