Book Title: Jiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Author(s): Mahodaysagarsuri
Publisher: Kastur Prakashan Trust

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Page 392
________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? गुरुदेवश्री के नेत्रों में तकलीफ हो गई। श्री संघ ने सेवा का पूर्ण लाभ लिया। अच्छे से अच्छे बड़े डॉक्टरों ने जी जान से सेवा का लाभ लिया, किंतु अन्ततो गत्वा निराशा ही हाथ लगी। दिन प्रतिदिन नेत्रों की ज्योति घटती ही चली जा रही थी। ऐसी स्थिति में पूज्य गुरुदेव श्री काफी चिन्तित थे। वह इसीलिए कि नेत्र ज्योति के अभाव में शास्त्रों का पठन-पाठन, स्वाध्याय, मुनिचर्या आदि समस्त कार्य रुक जायेगा। सन्त-सतियों को पढ़ाना गुरुदेव अपना प्राथमिक कर्तव्य मानते थे। लगभग अपने 72 वर्ष की उम्र तक उन्होंने एक नहीं अपि तु सैंकड़ों साधु-साध्वियों को विद्याध्ययन करवाया।) इस प्रकार के अनेक प्रश्न गुरुदेव के मानस में उभर रहे थे। इन्हीं विचारों में पूज्य गुरुदेव खोये हुए थे। जब से मैं (गौतम मुनि) दीक्षित हुआ तभी से मैंने देखा कि आप श्री की अत्यधिक आस्था मंत्राधिपति महामंत्र नवकार पर ही थी। डॉक्टरों की ओर से स्पष्ट उत्तर मिल चुका था कि अब नेत्र ज्योति वापस नहीं आ सकती।' यह सुनते ही हम सब मुनिराज काफी चिंतित थे। किन्तु किया क्या जाता? प्रतिक्रमण आदि से निवृत्त होकर मुनि मण्डल गुरुदेव की पावन सेवा में बैठा हुआ था। लगभग रात्रि के 8-00 बजे ही होंगे कि, न जाने आज गुरुदेव ने हम सभी को विश्राम के लिए कह दिया। हमने कहा गुरुदेव! अभी तो आठ ही बजे हैं। गुरुदेव ने फरमाया, 'अब मैं कल ही बात करूंगा।' हम सभी मुनि अपने-अपने आसन पर विश्राम हेतु चल दिये। गुरुदेव त्रिकरण, त्रियोग को एक चित्त करके महामंत्र नवकार का स्मरण करते-करते निद्राधीन हो गये। लगभग रात्रि के चार बज चुके थे। गुरुदेव के कानों में निम्न वाक्य सुनाई दिये "तू! क्यों फिक्र करता है, तेरे पास चौदह पूर्व का सार महामंत्र है। उसका अट्ठम तप (तेला तप) करके जाप कर। आनन्द मंगल होगा।" इन शब्दों को सुनकर जाग्रत हुए और अपने जाप में जुट गये। प्रातः समय नवकारसी के वक्त एक मुनिजी (श्रमणसंघी 365

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