Book Title: Jiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Author(s): Mahodaysagarsuri
Publisher: Kastur Prakashan Trust

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Page 418
________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? परमेष्ठी मंत्र का पवित्र मन से, मन-वचन-काया से स्मरण करना चाहिये। जिसके चित्त में कल्याण के पद का दातार पंच परमेष्ठी नमस्कार रूपी मंत्रराज के पद स्फुरित हो रहे हैं, तो फिर उसे मंत्र, औषधियों की अथवा गारुड़िक, चिंतामणि या इन्द्रजाल की क्या आवश्यकता है? अर्थात् उनकी कोई आवश्यकता नहीं है। 3. श्री नमस्कार के नौ पद वास्तव में सभी सिद्धान्तों के सारभूत हैं। उसमें पहले पांच पद अति महान हैं। सत्पुरूष उसे मुख्य महाध्येय के रूप में स्वीकार करते हैं। 4. मृत्यु के समय पंच परमेष्ठी रूपी पांच रत्न जिसके मुंह में होते हैं. उसकी भवान्तर में सद्गति होती है। 5. दोनों लोक में इच्छित फल देने वाले, अद्वितीय शक्तिशाली श्री नवकार मंत्र जयवन्त रहो कि जिसके पहले पांच पदों को श्री त्रैलोक्यपति तीर्थकरदेवों ने पंचतीर्थी1 के रूप में कहा है, जिन सिद्धान्त का सारभूत जिसके अड़सठ अक्षर अड़सठ तीर्थों के रूप ' में बताये हैं और जिसकी आठ संपदाएं अज्ञान अंधकार को नष्ट करने वाली आठ सिद्धियों के रूप में वर्णित हैं। 6. भोजन करते समय, सोते समय, निद्रा से उठते समय, संकट के समय, कष्ट के समय, और सभी समय सचमुच पंच नमस्कार का स्मरण करना चाहिये। 7. परमेष्ठी नमस्कार का बार बार स्मरण कर कई जीवों ने संसार सागर को पार किया है, कई कर रहे हैं और कई पार करेंगे। 8. जिन शासन में पाप का नाश करने वाले इस मंत्र के होते हुए पाप अपने एकछत्रीय राज के बार में सोच भी नहीं सकते। 9. जैसे सिंह से मदोन्मत्त गन्धहाथी, सूर्य से जैसे रात्रि संबंधी अंधकार का समूह, चन्द्र से जैसे ताप संताप का समुदाय, कल्पवृक्ष से जैसे मन की चिंताएं, गरूड़ से जैसे फणाधारी विषधर और बादलों से 389

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