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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - | एकादशी की सज्जाय में कहा है कि -
"कर उपर तो माला फिरती, जीभ फिरे मुख मांही। पण चितडूं तो चिहुं दिशिए डोले, इणे भजने सुख नाहीं।।"
यदि ऐसे भटकते चित्त से जाप करने से कोई लाभ न होता हो तो, क्या जाप करना छोड़ दें? जाप करते समय ही विकल्प क्यों ज्यादा सताते हैं? इत्यादि।
_इसका जवाब यह है कि जैसे गंडों के शिकंजे में फंसा आदमी जब छुटने के लिए प्रयास करता है, तब गुंडे अपनी पकड़ ज्यादा मजबूत बनाते हैं। वैसे अनादिकाल से इन राग-द्वेष रूपी गुंडों के शिकंजे में फंसी आत्मा जब नवकार के आलंबन से निकलने का प्रयास करती है, तब यह स्वाभाविक है कि वे ज्यादा तूफानी होकर आत्मा को कमजोर बनाने का प्रयास करें। परन्तु ऐसे मौके पर बल का प्रयोग न करते हुए धीरजपूर्वक कला से काम किया जाये, तो ही सफलता मिल सकती है। इसलिए ज्ञानी भगवंतों ने चंचल चित्त को एकाग्र करने हेतु अनेक उपाय बताये हैं। उसमें से कुछ महत्त्व के उपाय यहां पेश किये जा रहे हैं। उसके वास्तविक महत्त्व को पढने के बाद आचरण में लाने पर ही पता चलेगा।
(1) नवकार लेखन : हम सब का अनुभव है कि लिखने के समय प्रायः चित्त में लेखन संबंधी विचारों के अलावा अन्य विचार प्रवेश नहीं कर सकते हैं। इसलिए अच्छी अभ्यास पुस्तिका या डायरी लेकर प्रतिदिन नियमित रूप से अच्छे अक्षरों में शुद्ध मेलपूर्वक यथाशक्ति नवकार लिखने की आदत डालनी चाहिये। उससे हाथ एवं आंखें पावन होती हैं और चित्त की चंचलता कम होने लगती है। आकर्षक लिखावट के लिए विविध रंग की पेनों एवं रंगीन स्याही का भी उपयोग किया जा सकता है।
इस प्रकार लिखी हुई डायरियों को अच्छे स्थान पर रखकर धूप भी किया जा सकता है। आशातना के गलत भय से पानी में परठने की आवश्यकता नहीं है। ऐसी डायरियों का संग्रह किया हुआ हो तो घर के दूसरे सदस्यों को भी ऐसा करने की भावना जाग्रत होती है। पीछे की
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