Book Title: Jiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Author(s): Mahodaysagarsuri
Publisher: Kastur Prakashan Trust

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Page 443
________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? 7.शव्व पाव प्पणासणो 7.मंगलाणं च सव्वेसि 8.सव्व पाव प्पणासणो 8.मंगलाणं च सव्वेसिंह 9.सव्वपावप्पणाशणो 9.मंगलाणं च सवेसिं -(9)1.पढम होवई मंगलं 6.पढ़महोइ मंगलं 2.पढम होइ मंगलम् 7.पढ़म् होइ मंगलं 3.पढमंग होवई मंगलं 8.पढ़मं हवइ मंगलं 4.पढ़मम् हवई मंगलं 99.पढम होइ मंगलं 5.पढम होई मंगल 89. पढमं हवई मंगलं नोट : नवकार महामंत्र के अन्तिम चार पदों को चूलिका के रूप में जाना जाता है। वह अनुष्टुप् छंद में होने से छंदशास्त्र के नियमानुसार उसके प्रत्येक चरण में 8-8 अक्षर होने चाहिये। अन्तिम पद में "होइ" बोलने से इस नियम का पालन होता है। इसलिए अचलगच्छ की सामाचारी में तथा कुछ स्थानकवासी एवं कुछ दिगम्बरों में "होइ" बोला जाता है। जबकि शेष "हवइ' बोलने वाले बताते हैं कि आर्ष प्रयोग में कभी 9 अक्षर भी अपवाद के रूप में शास्त्रों में दिखाई देते हैं। उदाहरण:- दशवैकालिक सूत्र की प्रथम सजझाय में "भमरो आवियइ रसं' यहां 9 अक्षर होते हैं। किन्तु आर्ष प्रयोग होने से दोष रूप नहीं है। इसलिए इस बारे में तत्त्व (सही) तो केवली भगवंत ही जानते हैं। "होइ" तथा "हवइ के अर्थ में व्याकरण की दृष्टि से कोई अंतर नहीं है। इसलिए सर्वज्ञ से रहित ऐसे इस क्षेत्र में अभी तो सभी पर-मत सहिष्णु बनकर अपने-अपने गच्छ की सामाचारी के प्रति वफादार रहें, यही मध्यस्थ बुद्धि से सोचने पर हितावह लगता है। - सम्पादक नवकार जाप में एकाग्रता लाने के विविध उपाय ___ आज बड़ी संख्या में आराधकों की शिकायत रहती है कि, 'नवकार की माला तो गिनते हैं, किन्तु चाहिये उतनी एकाग्रता नहीं आती है। मौन 414

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