Book Title: Jiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Author(s): Mahodaysagarsuri
Publisher: Kastur Prakashan Trust

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Page 420
________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? बनता है, अग्नि एकदम पानी में और पानी-भूमि में बदल जाता है और जंगल नगर एवं सिंह सियार बन जाता है। 16. लोक द्विष्ट और प्रियघातक वगैरह को भी केवल नवकार मंत्र का स्मरण ही लोक में प्रीति उत्पन्न कराता है, शत्रुओं को मूल से दूर करता है, इष्ट की प्राप्ति करवाता है, वश में नहीं आने वाले को वश में करता है, और मारने वाले को भी स्तंभित कर देता है। 17. ध्यान किया गया यह मंत्र इस लोक की आपदाओं को दूर करता है, सभी कामनाओं को पूर्ण करता है और परलोक में भी स्वर्ग-मोक्ष आदि सुखों की प्राप्ति करवाता है। 18. श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा की पूजा और धूप आदि द्वारा शरीर एवं वस्त्र पवित्र करके तथा मन को एकाग्र करके तुम निरंतर इस मंत्र का जाप करो। 19. अन्त समय में जिसके दसों प्राण पंच नमस्कार के साथ जाते हैं, वह मोक्ष में नहीं जाये तो भी अवश्य वैमानिक होता है, अर्थात् विमानाधिराज देव होता है। 20. अहो! इस जगत में पंच नमस्कार ऐसा उदार है कि जो स्वयं आठ संपदाओं को ही धारण करता है, लेकिन सत्पुरुषों को अनंत संपदा देता है। - 1 अरिहंत के आद्य अक्षर "अ" से अष्टापद तीर्थ, सिद्ध के आद्य अक्षर "सि' से सिद्धाचल, आचार्य के आद्य अक्षर "आ" से आबूजी, उपाध्याय के आद्य अक्षर "3" से उज्जयंत (गिरनारजी) और साधु के आद्य अक्षर "स" से सम्मेतशिखर, इस प्रकार पंचतीर्थ समझना। (श्री नमस्कार भावना) अहो! आज मेरा महान् पुण्योदय जाग्रत हुआ है कि जिससे मुझे इन पंच परमेष्ठियों को नमस्कार करने का भावोल्लास जाग्रत हुआ। आज मुझे भव समुद्र का किनारा प्राप्त हुआ है। अन्यथा कहां मैं, कहां यह नवकार 391

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