Book Title: Jiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Author(s): Mahodaysagarsuri
Publisher: Kastur Prakashan Trust

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Page 426
________________ -जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - अनन्तदर्शन - दर्शनावरणीय कर्म का सम्पूर्ण क्षय होने से अंत रहित केवलदर्शन प्राप्त होता है। उससे लोकालोक का स्वरूप देखते हैं। अव्याबाध सुख - वेदनीय कर्म का सम्पूर्ण क्षय होने से सभी प्रकार की पीड़ा से रहित अनन्त सुख प्राप्त होता है। अनन्त चारित्र - मोहनीय कर्म का पूर्णतया क्षय होने से अनंत चारित्र गुण प्राप्त होता है, उसमें क्षायिक सम्यक्त्व और यथाख्यात चारित्र का समावेश होता है, उससे सिद्ध भगवान आत्म स्वभाव में सदा स्थिर हैं, वही वहां चारित्र है। अक्षय स्थिति - आयुष्य कर्म का क्षय होने से कभी नष्ट न हों | ऐसी स्थिति प्राप्त होती है। सिद्ध की स्थिति की आदि है, किन्तु अंत नहीं है। इसलिए उनकी स्थिति सादि अनंत कही जाती है। अरूपिता - नाम कर्म का क्षय होने से वर्ण, गंध, रस और स्पर्श रहित होते हैं। क्योंकि शरीर न होने से यह सब नहीं हो सकते हैं, उससे अरूपीपना प्राप्त होता है। अगुरुलघु - गोत्र कर्म का क्षय होने से यह गुण प्रकट होता है। उससे भारी, हल्का या ऊँच-नीच का भेद नहीं रहता है। अनंतवीर्य - अंतराय कर्म का क्षय होने से अनंतदान, अनंत लाभ, अनंतभोग, अनंत उपभोग, और अनंत वीर्य गुण प्रकट होते हैं। अर्थात् उनको अनंत शक्ति प्राप्त होती है। समस्त लोक को अलोक में और अलोक को लोक में परिवर्तन कर सके वैसी शक्ति स्वाभाविक रूप से रही हुई होती है, फिर भी वे ऐसा कार्य नहीं करते हैं और न ही करेंगे: क्योंकि पुद्गल के साथ की प्रवृत्ति उनका धर्म नहीं है। इस गुण से अपने आत्मिक गुण हैं, उनको उसी रूप में रखते हैं, परिवर्तन नहीं होने देते हैं। आवश्यक नियुक्ति में इस प्रकार निर्देश हैनित्थि (च्छि) न सव्वदुक्रवा, जाई जरा मरण बंधण विमुक्का। अव्वाबाहं सुक्खं, अणुहति सासयं सिद्धा।। 988।। 397

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