Book Title: Jiske Dil Me Navkar Use Karega Kya Sansar
Author(s): Mahodaysagarsuri
Publisher: Kastur Prakashan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 315
________________ - जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ? को अभी ही मार डालेंगे ! यह सुनते ही सभी के प्राण ऊपर आ गये। वास्तव में उनके पास घर में दूसरी रकम थी ही नहीं, इसलिए कहाँ से दें। इस ओर डाकुओं के सरदार ने गिनती बोलनी शुरू कर दी। एक... दो...तीन... चार... पांच... छः...सात... इस घटना के घटने से कुछ महिने पहले वे मेरे सम्पर्क में आये थे। मैंने उन्हें घर में पंचधातु के जिन प्रतिमाजी विराजमान करने के लिए विशेष सलाह दी थी। प्रतिदिन इस प्रभुजी के समक्ष नवकार महामंत्र गिनने की भी प्रेरणा की थी। उस अनुसार उन्होंने घर में प्रभुजी को विराजमान किया और प्रतिदिन उनके समक्ष नवकार गिनने लगे। इसलिए उपरोक्त आपत्ति के समय घर के सभी सदस्यों ने प्रभुजी के समक्ष नाभि की गहराई से जोर से नवकार गिनना प्रारम्भ कर दिया। वह डाकू आठ... नौ बोलकर जैसे भी बन्दूक का बटन दबाने लगते हैं वैसे ही एक अकल्पनीय घटना बन गयी । वास्तविक सेना के जवान वहाँ आ पहुंचे और उसी ही क्षण उन सभी ही नकली जवानों (लूटेरों ) को धड़ाधड़ गोलियों से बींध डाला डाला और घर के सभी ही सदस्य आबाद बच गये। कहने की आवश्यकता नहीं है कि, तब से लेकर घर के सभी ही लोग प्रभुजी एवं नवकार के अनन्य उपासक बन गये। वास्तव में, जो अनन्य शरण भाव से नवकार की शरण में जाता है, उसका बाल भी बांका कौन कर सकता है? खजाने की रक्षा करने वाला - श्री नवकार यह भी नैरोबी में बसे और मेरे परिचय में आये दो सगे जैन भाइयों की बात है। वे प्रतिदिन नवकार महामंत्र का नियमित स्मरण करते थे। एक दिन सुबह के समय में 6 बजे अचानक तीन शस्त्रधारी गुंडे 288

Loading...

Page Navigation
1 ... 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454