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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
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'यह तेरा मंत्र । " ?
सेठ कहते हैं
मुसलमान कहता है- "जी, सरकार। "
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'अहो ! यह तो हमारे घर के बाल बच्चे और घर के सभी लोग जानते हैं। जा... जा... हम तो प्रतिदिन गिनते हैं फिर भी कुछ नहीं होता, यह पानी का कुण्ड तो कुदरती बना है, इसमें मंत्र का प्रभाव नहीं है ।" - सेठ बोले ।
"ऐसा? आप यह मंत्र प्रतिदिन गिनते हो? आप यह मंत्र जानते हो? इसमें कुछ नहीं ?" - मुसलमान ने प्रश्न किया।
देखा ! सेठजी स्वंय अश्रद्धालु थे। नवकार मंत्र के ऊपर का विश्वास खो बैठे थे। इस मुसलमान को दृढ श्रद्धा थी, पूर्ण विश्वास था। वह सेठजी के संसर्ग से विश्वास खो बैठा।
मुसलमान ने फिर पानी का कुंड बन जाये इस इच्छा से नवकार मंत्र का ध्यान किया, बहुत नवकार गिने, किंतु कुंड या पानी का नामोनिशान नहीं आया । मुसलमान ने सोचा कि, सेठजी की बात सही है, इस मंत्र में कुछ नहीं है।
आज ऐसी कई आत्माएं बिचारे कइयों की श्रद्धा लूट रही हैं। स्वयं अश्रद्धालु होते हैं, और दूसरों को भी अश्रद्धालू बनाते हैं। फिर मुसलमान गुरु महाराज से मिलता है और सही हकीकत पूछता है।
तब गुरु महाराज ने सत्य हकीकत सुनाई। सेठ की बात सुनकर गुरु महाराज को बहुत खेद हुआ। ऐसे लोगों को स्वयं को विश्वास नहीं होता इसलिए दूसरों को भी विश्वास से चलित करते हैं। वास्तव में जैन धर्म आज बनियों के हाथ में आया है। प्रथम क्षत्रियों के हाथ में था। स्वप्नों के वर्णन में आता है कि, उकरडे (गन्दगी का ढेर ) पर कल्पवृक्ष उगा, यह सही बात है।
विश्वास रखना पड़ता है, बिना धर्म के ऊपर यदि विश्वास नहीं रखा जाये तो धर्मकार्य कहां से फलीभूत हो ? फल मीठा चखना है, बातें
दुनिया के सभी व्यवहारों में विश्वास व्यवहार भी नहीं चलता है।
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