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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
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लहर में फंसा और आज वातावरण एकदम बिगड़ गया। ठाकुर का साला हिरासत में था। उसने पुलिस को वचन दिया कि 'तुम आज मुझे छोड़ दो! कल यदि युवक मुक्त न हो जायें, तो तुम मेरी लाश पर दंगा खेलना।" डाकू का वचन अर्थात् वचन ! डाकू छोड़ा गया, और वह चंबल की घाटियों की ओर भागा।
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नौ तारीख का पूरा दिन ठाकुर के लिए परेशानी भरा था। हम देखते थे किं, वह बात करते-करते गरम हो जाता था। सभी हमारी मुक्ति की ही बात कर रहे थे। किन्तु ठाकुर को कैसे भी करके बारह तारीख तक बात आगे बढ़ानी थी। जिन युवाओं के लिए इतना - इतना खर्चा किया, उन्हें एक पैसा भी लिए बिना छोड़ना, उसका हदय मानता नहीं था ।
उतने में शाम के समय एक डाकू आया, वह ठाकुर का साला था। उसने सीधी ही आज्ञा दी, "गोपी, तुम इन युवाओं को मुक्त कर दो! या फिर मुझे खत्म कर दो! लो, यह बन्दूक ! " ठाकुर ने पूरी बात सुनी। साले की समर्पण की प्रतिज्ञा के आगे झुकने के अलावा उसे कोई सहारा दिखाई नहीं दिया।
कइयों की सहानुभूति गुमा बैठे डाकू जल्दी निर्णय लेने में अशक्त थे। साले के लिए पल-पल कीमती था। उसने दूसरी बार कहा ' गोपी! विचार क्या कर रहे हो ? पकड़ा गया तो जीवन भर की कमाई मिट्टी में मिल जायेगी। इस बार पुलिस इस प्रकार कोपायमान हुई है कि, एक डाकू जीवित नहीं रह सकेगा ! और मेरे लिए तो मेरे वचन की कीमत है। या तो निर्णय ले, या ले यह बन्दूक ! और कर दे मुझे खत्म!" और उस डाकू ने हवा में बन्दूक के एक-दो धमाके किये। बाद में उसने बन्दूक की नाल अपनी छाती की ओर रखी। दूसरे ही क्षण खेल खत्म हो जाता किन्तु गोपी खड़ा हो गया। साले की बन्दूक छीनकर उसने युवाओं की मुक्ति मान्य रखी!
हम तो सात बजे ही एक घाटी की ओट में सो गये थे। बारह तारीख से पहले मुक्ति की तरफ देखना भी व्यर्थ था। वहां अचानक ही
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