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र हम महावीर के तीर्थ की चर्चा करें। ऐसे सत्पुरुषों साधु का अर्थ है, जो सुनकर न पहुंच सके, सुनना जिसे काफी न " को फिर-फिर सोचना जरूरी है। सोच-सोचकर पड़े जिसे कुछ और करना पड़े। साधुओं ने हालत उल्टी बना दी
सोचना जरूरी है। बार-बार उनका स्वाद हमारे है। साधु कहते हैं कि साधु श्रावक से ऊपर है। ऊपर होता तो प्राणों में उतरे। हमें भी वैसी प्यास जगे। जिस प्यास ने उन्हें महावीर उसकी गणना पहले करते। तो उसे प्रथम रखते।
मात्मा बनाया, वही प्यास हमें भी परमात्मा बनाये। क्योंकि महावीर कहते हैं, ऐसे हैं कुछ धन्यभागी, जो केवल सुनकर अंततः प्यास ही ले जाती है।
| पहुंच जाते हैं। जिन्हें कुछ और करना नहीं पड़ता। करना तो उन्हें जब प्यास इतनी सघन होती है कि सारा प्राण प्यास में पड़ता है जो सुनकर समझ नहीं पाते। तो करनेवाला सुनने से रूपांतरित हो जाता है, तो परमात्मा दूर नहीं। परमात्मा पाने के दोयम है, नंबर दो है। लिए कुछ और चाहिए नहीं। ऐसी परम प्यास चाहिए कि उसमें इसे समझना। सब कुछ डूब जाए, तल्लीन हो जाए।
बुद्ध कहते थे, ऐसे घोड़े हैं कि जिनको मारो तो ही चलते हैं। तो फिर महावीर की चर्चा करें। और महावीर की फिर चर्चा ऐसे भी घोडे हैं कि कोडे की फटकार देखकर चलते हैं. मारने की करने में यह बात सबसे पहले समझ लेनी जरूरी है कि महावीर जरूरत नहीं पड़ती। ऐसे भी घोड़े हैं कि कोड़े की छाया देखकर ने श्रवण पर बड़ा जोर दिया है। महावीर कहते हैं, सोया है चलते हैं। फटकारने की भी जरूरत नहीं पड़ती। आदमी, तो कैसे जागेगा? कोई पुकारे उसे, कोई श्रावक को सुनना काफी है। उतना ही जगा देता है। तुमने हिलाये-डुलाये, कोई जगाये। कोई उसे खबर दे कि जागरण का किसी को पुकारा, कोई जग जाता है। पर किसी को हिलाना भी कोई लोक है। सोया आदमी अपने से कैसे जागेगा। सोया पड़ता है। किसी के मुंह पर पानी फेंकना पड़ता है। तब भी वह तो जागने का भी सपना देखने लगता है। सोया तो सपने में भी करवट लेकर सो जाता है। श्रावक है वह, जिसने सुनी पुकार सोचने लगता है, जाग गये! भेद कैसे करेगा सोया हुआ आदमी और जाग गया। साधु है वह, जो करवट लेकर सो गया। कि जो मैं देख रहा हूं वह स्वप्न है या सत्य? कोई जागा उसे | जिसको हिलाओ, शोरगुल मचाओ, आंखों पर पानी फेंको। जगाये। कोई जागा उसे हिलाये। इसलिए महावीर कहते हैं, श्रवण-सम्यक-श्रवण-सुधी व्यक्ति के लिए पर्याप्त है। सुनकर ही सत्य की यात्रा शुरू होती है।
इशारा बहुत है बुद्धिमान को। महावीर ने कहा है, मेरे चार तीर्थ हैं। श्रावक का, श्राविका पहला सूत्र है आज काका; साधु का, साध्वी का। लेकिन पहले उन्होंने कहा, श्रावक सोच्चा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं। का, श्राविका का। श्रावक का अर्थ है, जो सुनकर पहुंच जाए। | उभयं पि जाणए सोच्चा, जं छेयं तं समायरे।।
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