Book Title: Jambudwip Part 02
Author(s): Vardhaman Jain Pedhi
Publisher: Vardhaman Jain Pedhi
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आत्मा के अधिकार :-12(१) जीव (२) पयोग से होता है । एक साकार रूप है । उपयोग (३) अमूर्तिक (४) कर्ता (५) स्वेदेह और अनाकार रूप है । घट-पट आदि की परिमाण (६) भोक्ता (७) संसारस्थ (८) सिद्ध व्यवस्था लिए हुए किसी वस्तु के भेदग्रहण और है उर्ध्वगमन-स्वभावी ।
करने को आकार कहा गया है और घट-पट १. जीव :-जो रसरहित, रूपरहित, आदि को सामान्य रुप से ग्रहण करना गंध-रहित, अव्यक्त है, चेतनागुण से सहित अनाकार है ।16 ज्ञानोपयोग वस्तु को भेदहै, जिसको किसी चिह्न या इन्द्रिय द्वारा पूर्वक ग्रहण करता है, इसलिए साकार-विकल्प ग्रहण नहीं किया जा सकता है और जिसका है और दर्शनोपयोग वस्तु को सामान्य रुप से आकार भी न कहने में आए, वह जीव है ।13 ग्रहण करता है, इसलिए अनाकार-विकल्प जीव कई प्रकार के कहे गये हैं । फिर भी रहित है ।17त्रिविध-चेतना की अपेक्षा वह तीन प्रकार ३. अम्रर्तिक :-रूप, रस, गंध, वर्ण का है-(क)14कर्मफल-चेतना (ख) कर्म-चेतना और स्पर्श से रहित होने के कारण आत्मा और (ग) ज्ञानचेतना
अमूर्तिक है । यह कथन आत्मा के शुद्ध_ (क) कर्मफलचेतना :- त्रस-स्थावर जीव स्वरुप का है । कर्म पुद्गलमय परमाणुओं कर्मफल का अनुभव करते हैं।
से आत्मा को मूर्तिक कहा गया है ।18 (ख) कर्मचेतना :- त्रस जीव इष्ट-अनिष्ट जिस प्रकार एक ही मनुष्य को पिता पुत्र पदार्थों में आदान-प्रदान रूप कर्म करते हैं। रुप से पुकारा जाता हैं, उसी प्रकार आत्मा
(ग) ज्ञानचेतना :-प्राणीपने के व्यवहार को मूर्तिक इन्द्रियों से जान नहीं सकते हैं, से परे रहने के कारण अतीन्द्रिय-ज्ञानी अरहंत- इसलिए अमूर्तिक कहा आता है, शरीर के सिद्ध ज्ञानमात्र का वेदन करते हैं । ज्ञान, कर्म कारण मूर्तिकभी कहा जाता है ।19 और फल ये तीनों आत्मा के परिणाम हैं।
४. कर्ता :-आत्मा द्रव्यकर्म और भाव___२. उपयोग :-आत्मा के चैतन्य-गुण के कर्म को करनेवाला है । ज्ञानावरणादिकम आत्मा परिणमन को उपयोग कहा गया है । यह के द्रव्यकर्म हैं और राग-द्वेष आदि भाव उपयोग आत्मा से अनन्यभूत-अभिन्न रहता कर्म है ।20 आत्मा अपने भावों का कर्ता है, है ।15 उपयोग-ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग फिर भी यह आत्मा अनेक प्रकार के पुद्गल रूप है । साकार-विकल्प सहित पदार्थों का कर्मों को कर्ता है । मिथ्यात्व, योग, अविरति, ज्ञानना ज्ञानोपयोग से होना है । तथा अना- अज्ञान को पुद्गल कर्म कहा गया हैं, इनके कार-विकल्प रहित पदार्थ को जानना दर्शनो- कारण से आत्मा जिस भाव को करता है,
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