Book Title: Jambudwip Part 02
Author(s): Vardhaman Jain Pedhi
Publisher: Vardhaman Jain Pedhi

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Page 147
________________ २६ ऐसी शंका करके उसके समाधानमें कहा कि- गुणाघात तथा मनुष्यों के स्वास्थ्य पर उनका "तदन्तः पातिजलस्पर्शनाभिभवादग्रहः"। चन्द्र प्रत्यक्ष प्रभाव है। माकेआन्तःपाती जल के अभिभव के कारण जैसे सूर्य मण्डल से पृथक् भी सूर्य का प्रभाव चन्द्रकिरणों में तेजकी अनुभूति नहीं होती !” है, वैसे ही चन्दमण्डल से पृथक् चन्द्रका उससे चन्द्रमा में जलकी मात्रा स्पष्ट प्रमा- प्रभाव रहता है। णित होती है, किन्तु वह जल विशुद्ध सोमात्मक उस प्रकार अग्नि और सोम ये दोनों है न कि पृथिवी के जल के समान है। सारे विश्व में व्याप्त है । जैसे इन्धन के बिना अभिज्ञानशाकुन्तल में कालिदासने कहा है- अग्निका प्रज्वलन नहीं होता, पैसे सोम के "शीतरश्मित्वमिन्दोः” अखण्ड धारापात के बिना सूर्य का भी प्रज्वलन चन्द्रमा शीतरश्मि है। नही हो सकता। उसके अतिरिक्त जगत् के समस्त प्राणियों इसीलिये श्रीमद् भागवत में सोम या को सूर्य में उष्मा की ओर चन्द्र में शीतता- चन्द्रमण्डलको सूर्य से ऊपर बताया गया है। प्रतीति स्वानुभवसिद्ध है । सोमका महान अर्णव सर्वव्यापक है, किन्तु - उससे स्पष्ट है कि चन्द्रमा में जल तत्व उसका विशुद्ध रुप सूर्य के ऊपर है। जिसकी है । आधुनिक वैज्ञानिकों को एतदर्थ अपने पूर्णता में पूर्णमासी होती है, वह दृश्य चन्द्र अनुसंधानको आगे बढाना चाहिए। उसी महान सोमार्णव का स्थूल रुप है । वैदिक-सिद्धांत के अनुसार अग्नि और आज वैज्ञानिक चन्द्रलोक (!) पहुंच गये हैं। सोम इन दो तत्त्वों की लीला ही सृष्टि का ऐसा मानकर शास्त्रीय-रहस्य से अपरिचितप्रवर्तक है। व्यक्तियोंने शास्त्रीय मान्यताओं के उपर कटु प्रहार "अग्निषोमात्मक जगत ।” अग्नि ही सर्यरुप किया ! परन्तु चन्द्र! यात्रा के उल १५ वर्षों के में तथा सोम चन्द्ररुप से व्याप्त है। सृष्टि अन्तराल में चन्द्र-सम्बन्धी ज्ञान में क्या कुछ में दोनों की अनिवार्य आवश्यकता है। प्रगति हुई है ? प्रश्नोपनिषद में कहा गया है कि स्थिति यह है कि वहां का दिव्य भोग "प्रजाकामनासे प्रजापति ने तप कर के या वैभव सूक्ष्म है, स्थूल नहीं। उसकी प्राप्ति एक मिथुन उत्पन्न किया । वह था रवि और के लिये धर्म-कर्मानुष्ठान ही मार्ग है । प्राण । जो पदार्थ सूक्ष्म वीक्षणयन्त्रों से दिखाई प्राणका स्थूल रुप आदित्य और रवि का देता है, वह मात्र नेत्रों से दृष्ट नही होता स्थूल रुप चन्द्रमा है ।" जैसे ही धर्म कर्मानुष्ठान साध्य सूक्ष्म दिव्य इन दोनों का सृष्टिसे प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। पदार्थ का दर्शन सूक्ष्मवीक्षणयन्त्रों से भी अन्न-फलादि का परिपाक औपधियों में विशेष नहीं होता । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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