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है । इसके आगे स्वर्णमयी पृथ्वी हैं जो दर्पण में है । बौद्धदर्शन के अनुसार इसकी स्थिति के समान स्वच्छ है । इसमें गिरी हुई कोई निमिन्धर और चक्रवाल पर्वत के मध्य सागर वस्तु फिर नहीं मिलती । इसलिए वहां देवताओं में सुमेरु के दक्षिण में है । (चित्र ५-६) के अतिरिक्त कोई प्राणी नहीं रहता, अर्थात् तीनो परम्पराओं के अनुसार इस द्वीप में भागवत के अनुसार मानुषोत्तर पर्वत के आगे
जम्बूवृक्ष होने के कारण इसका नाम जम्बूद्वीप मनुष्यों की गति नहीं है (२६)
है। जैन और वैदिक परम्पराओं के अनुसार जम्बूद्वीप :
इसका विस्तार एक लाख योजन है । (२७) जैन और वैदिक दोनों परम्पराओं के अभिधर्मकोश के अनुसार जम्बूद्वीप के अनुसार जम्बूद्वीप सभी द्वीप-समुद्रों के मध्य तीन पाश्र्व २००० योजन के है। एक पाव
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