Book Title: Jambudwip Part 02
Author(s): Vardhaman Jain Pedhi
Publisher: Vardhaman Jain Pedhi

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Page 160
________________ ३९ हिरण्यमय को हैरण्यवत और उत्तरकुरु को ऐरावत कहता है, सुमेरु के पास चार पर्वतो की कल्पना दोनों में समान है. पर्वतो के नाम गन्धमादन व माल्यवान समान ही है । और जिनके नाम पर यह देश अजनाथ वर्ष कहलाता था ” (३४) यदि भागवत के नौ क्षेत्रो वाला कथन प्रमाणिक माना जाये तो जैन भूगोल का इससे पूर्ण मेल बैठ जाता है । भागवत में इलावृत क्षेत्र में पर्वतो द्वारा किये गये तीन पर्वतों की कल्पना है । इलावृत किंपुरुष और भद्राश्व. जैन परम्परा भी पर्व तो द्वारा विदेह क्षेत्र में तीन खंड मानती है । देवकुरु, उत्तरकुरु और विदेह । (दे० चि०७ तथा ८) भरत क्षेत्र : उमास्वाति कृत तत्त्वार्थ सूत्र में 'भरत हैमवत हरिविदेह यक हिरण्यवत्तैरावत वर्षा : क्षेत्राणि" सूत्र के अनुसार जम्बूद्वीप में पहला खंड भरत खंड है । भागवत के अनुसार पहले इसका नाम नाभि खंड था क्योंकि आग्नीध्र ने पुत्रो के नाम पर खण्डों के नाम रखे थे और नाभि - प्रथम पुत्र थे । अतः पहला खण्ड नाभि खण्ड के नाम से प्रसिद्ध हुआ । चूँकि नाभि अंजनाभ भी कहलाते थे । अतः इस खंड का नाम अंजनाथ खंड रहा । डा० यसुदेव शरण अग्रवाल ने लिखा है "स्वायंभुव मनु है प्रियव्रत, प्रियव्रत के पुत्र नाभि, नाभि के ऋषभ और ऋषभ के सो पुत्र हुये जिनमें भरत ज्येष्ठ थे । यही नाभि अंजनाभ भी कहलाते थे Jain Education International भागवत में भी अजनाभ का उल्लेख आया है । एक बार भगवान इन्द्र ने ईर्ष्यावश उनके राज्य में वर्षा नहीं की, तब योगेश्वर भगवान ऋषभदेव ने इन्द्र की मूर्खता पर हंसते हुये अपनी योगमाया के प्रभाव से अपने वर्ष अंजाम वर्ष में खूब जल बरसाया ३५ यहीं अजनाभ वर्ष आगे चलकर ऋषभ के ज्येष्ठ पुत्र भरत के नाम पर भारत बर्ष कहलाया (३६) वायुपुराण, अग्निपुराण, मार्कण्डेय, ब्रह्मण्ड नारद, लिङ्ग, स्कन्द शिव कुम वाराह तथा मत्स्य पुराण के अनुसार भी प्रियव्रत के पुत्र अग्नींध, नाभि, नाभि के ऋषभ और ऋषभ के ज्येष्ठ पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पा । ( ३७ ) अनेक जैन आगम तथा पौराणिक ग्रन्थो के आधार पर भी ऋषभ पुत्र भरत पर इस देश का नाम भारतवर्ष नाम पडा । इस प्रकार दोनों परम्पराओं के आधार पर इस खण्ड (देश) का नाम भारत पडा । तत्त्वार्थ- सूत्र एवं अन्य जैन प्रन्थों के अनुसार जम्बूद्वीपमें क्षेत्रों को विभाजित करने वाले जो छह कुलाचल पर्वत है, उनमें प्रत्येक पर एक महाहृद है, हिमवत्, महाहिमवत्, निषध नील, रुक्मी, शिखरी इन छ पर्वतों पर क्रमशः पद्म महापद्म, तिगिच्छ केसरी, महापुण्डरीक, और पुण्डरीक ये छ महा (तालाब) है । (३८) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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