________________
३७
अंतर है अतः भागवत के अनुसार नौ क्षेत्र और आठ पर्व है जबकि विष्णुपुराण के अनुसार सात क्षेत्र और छ पर्वत है । भागबत का कथन समीचीन जान नहीं पडता क्योंकि आगे जो कथन किया गया है वह विष्णुपुराण का ही समर्थन करता सा प्रतीत होता है । यद्यपि येनकेनप्रकारेण नौखंडों का समाधान करने का प्रयास किया गया है तथापि वह असमीचीन है। इस संबंध में यह कथन द्रष्टव्य है
" एषां मध्ये इलावृत नाम अभ्यन्तर वर्ष उत्तरोत्तरेणेलावृत नीलः श्वेतः श्रङ्गवानिति त्रयो रम्यक- हिरण्यमय- कुरूणां वर्षाणां मर्यादागिरयः एषां दक्षिणेन इलावृत निषेधो हेमकूटो हिमालय इति प्रागायता यथा नीलादयोऽयुतयोजनोत्सेधा हरि वर्ष - किंपुरुष - भारता यथाक्रमं
Jain Education International
अम्बू द्वीप चित्र- 2
पीपल नृश
1
तथैवेला वृतमपरेण पूर्वेण व माल्यवद् - गन्ध मादनावानील- निषधायतो द्विसहस्रमपप्रयुतः केतुमाल भद्राश्वयोः सीमानं विदधते
श्रीमद्भागवत ५/१६ / ७-१० इसका रेखाचित्र दर्शाया जा सकता है । (दे. चित्र सं. ७)
इस प्रकार भागवत का नौ क्षेत्रों वाला कथन असमीचीन है क्योंकि नौ नौ हजार योजन वाले नौ क्षेत्रों का जो कथन किया गया है वह उपर्युक्त उदाहरण से संगत नहीं होता । इस कथन के आधार पर रम्यक और भद्राव या केतुमाल एक से नहीं हो सकते क्योंकि इलावृत में ही इलावृत कर दिये गये है इसी प्रकार आठ पर्व तो में निषध और माल्यवान या गन्धमादन एक से विस्तार वाले नहीं हो सकते ।
शाहरु
शहर
70
भारत
हिगल
IN000 वेत पत
किंपुरुष
म
सम्यक
कदंब वृक्ष
महाव
हरिवर्ष
नील पर्वत
इलावृत
For Personal & Private Use Only
हिमवान पत
निषध पर्वत
हेमकूट पर्वत
}
www.jainelibrary.org