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उपर्युक्त दो धाराओं में किसे वास्तविक सत्यों का मार्मिक ज्ञाता बनने का दावा कहा जाय ? किसे धारणा रुप ? यह एक करता है। प्रश्न है।
वर्तमान युग में विज्ञानवाद की चकाचौंध प्रत्यक्ष के किये प्रमाग की क्या आव- में समझदारी-विचारशीलता पर कुछ आवरण श्यकता है :
सा आ जाने से मानव की धूमिल धारणाएं
पनप कर मानव के प्राकृतिक-विकास को यहां भी लोग कह देते है कि 'जो अवरोध पहुंचा रही है। प्रत्यक्ष-प्रमाणित है, वही वास्तविक है, और जिसके लिए वैसा साध्य नहीं वह है धारणा अतः विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में से भगोल रुप । किन्तु इसमें भी यह आपत्ति आ सकती के क्षेत्र पर कुछ मार्मिक-प्रकाश प्राप्त करनेका है और वह यह कि आप जिसे प्रत्यक्ष कहते प्रयास करना जरुरी है. है, वह भी अप्रत्यक्ष ही है, वहां भी धारणा ने अपना प्रभाव मस्तिष्क पर जमा रखा है,
आशा है कि तटस्थ विद्वान, विचारक जिससे धारणा के अनुरुप संयोजना की जाती है। योग्य विचार करेंगे। .. ____ मानव-बुद्धि की सीमाएं काफी पर्याप्त खास बात :- "पुराणमित्येव न साधु होने पर भी भौतिकवाद के उन्माद में कभी सर्व” यह कालीदास की उक्ति को सामने कभी मानव अपने आपको प्रकृति के सनातन रख करके ही यह प्रयास करना जरुरी है।
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