Book Title: Jambudwip Part 02
Author(s): Vardhaman Jain Pedhi
Publisher: Vardhaman Jain Pedhi

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Page 164
________________ M www गंभीरतासे पढ़ें ले. डो. आर. डी. त्रिपाठी-दिल्ही ____ हम अपने शालेय पाठ्य-ग्रन्थों के धारणा और वास्तविकता :द्वारा प्राप्त सीमित ज्ञान के आधार पर ज्ञान की परिसीमा पर्याप्त विस्तृत है । पृथ्वी का आकार गोल मानते हैं। विभिन्न मनीषियों द्वारा विभिन्न-माध्यमों से इस ज्ञान की वृद्धि में पाठ्य-पुस्तकों के क्रमिक जिसका अन्वेषण किया गया हो, उसे केवल ज्ञान से पुष्ट हमारे भूगोल के अध्यापक भी कतिपय धारणाओं से धूमिल नहीं किया जा वैसा ही अपना सहयोग प्रदान करते हैं। सकता है। इस प्रकार 'द्विबद्धं सुबद्धं भवति' वाली उक्ति धारणा केवल मन की भूमिका पर अधिइस मान्यता पर दृढ़ बने रहने में प्रेरक हो कार जमाती है, जब कि वास्तविकता सत्य के जाती है। समीप ले जाकर उसकी परतों को एक-एक यदि हम कहीं किसी धार्मिक ग्रन्थ अथवा करके उघाड ___ करके उघाडती है और हृदय पर ऐसा सुदृढ आस्तिक विद्वान के मुख से 'पृथ्वी का आकार प्रभाव स्थापित कर देती है कि वृक्षों को गोल नहीं है,' यह सुनते हैं । तो कहते हैं उखाड फेंकने वाले वायु का वेग उन्नत 'यह भूगोल क्या जाने ?' और यदि वह हठ शिलोच्चयी पर्वत के समक्ष मूर्छित मात्र रह पूर्वक शास्त्र का उद्धरण दे बैठा तो कहेंगे जाता है। 'शास्त्रों में तो सब कपोल-कल्पना अथवा दन्त धारणा अथवा मान्यता की भूलमिति कथाओं का ही संग्रह है, जैसे रावण के दस कल्पना और लौकिक प्रयास की परिणति शिर, कार्तवीर्याजून के एक हजार हाथ' आदि। से निर्मित होती है, जब कि वास्तयदि इससे भी वह नहीं माना तो हमारा बिकता के लिये आत्मप्रत्यय और उत्तर होगा "आज जैसे. वैज्ञानिक अन्वेषणा अलौकिक उपादानों का सबल सहयोग के साधन उपलब्ध है, उनमें से क्या एक होता है। भी उस समय उनके पास उपलब्ध था ?" . इस दृष्टि से पृथ्वी के आकार-चिन्तन में आखिर में कंटालकर नास्तिक या धर्म-विमुख दो धाराएँ प्रवहमान है, एक धारणामूलक और कहकर वह पंडित पिण्ड छुडा लेगा। दूसरी वास्तविकतामूलक । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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