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इनमें से प्रत्येक हृद से दो दो नदियां निकलती है (३९) और अपने अपने क्षेत्रों को सींचती हुई समुद्र में जा गिरती है । भरत और हैमवत क्षेत्र के बीच जो हिमवान पर्वत है उस पर अवस्थित पद्महृद से गंगा और सिंधु दो नदियां निकलती है, गंगा पूर्व की और सिंधु पश्चिम की ओर जाती है । ४० (दे. चित्र - ८)
साथ ही भरत क्षेत्र के पश्चिम तक फैला रजतमय है (४१) (दे. चित्र ८)
विजयार्ध से उत्तर में तीन तथा दक्षिण में तीन खण्ड हैं, इनमें दक्षिण भरत खण्ड के तीन खण्डों में मध्य का आर्यखण्ड है बाकी पाँच म्लेच्छ खण्ड के नाम से जाने जाते हैं । (४२)
इस प्रकार दोनों दर्शनों का भूगोल अनेक -अशो में समानता रखता है ।
• लोक की स्थिति दोनों में पुरूषाकार ही
है ।
मध्य में पूर्व से विजयार्ध पर्वत
०
चूडी के आकार में द्वीपों का नामकरण वृक्षों के आधार पर.
० मानुषोत्तर पर्वत से आगे मनुष्यों का अवस्थान न होना,
०
जम्बूद्वीप का सभी द्वीपों और पर्वतों मध्य में होना,
०
जम्बूद्वीप के बीच सुमेरु का होना, जम्बूद्वीप में सात या नौ वर्षों (क्षेत्रों)
०
का होना ।
• छह कुलाचलों का होना,
• उनके नामों का लगभग समान होना,
० बीच में विदेह का होना ।
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विदेह में सुमेरु और उसके पास चार अन्य पर्वतों का होना ।
०
• भरत खंण्ड का नामकरण वृषभ पुत्र भरत के नाम पर होना
- आदि विषयों में दोनों समान है । उर्ध्व और अधोलोक सम्बन्धी अनेक समानताएँ हैं, जिनका आकलन इस लघु निबन्ध में सम्भव नहीं है ।
वस्तुतः प्रस्तुत विषय तीन स्वतन्त्र शोध प्रबन्धों की अपेक्षा रखता है—
१ जैन और वैदिक भूगोल का तुलनात्मक
भूगोल का
३ जैन करणानुयोग के आधार पर विश्व का का भूगोल.
संस्थान इस दिशा में अग्रणी हो ऐसी आशा है।
अध्ययन.
२ वैदिक-पुराणों में वर्णित
तुलनात्मक अध्ययन.
सन्दर्भ
१ रत्नकरण्ड श्रावकाचार वीर सेवा - मंदिर ट्रस्ट दिल्ही १९७२, २/२
२ वही
३ आदि पुराणः भारतीय ज्ञानपीठ काशी
१९६३४/१५
४ श्रीमद् भागवत : गीताप्रेस सं० २०१८, २/५/२१-३५
५ वही २/५/३६
६ वही २/५/३८-३९
७ आदिपुराण ४/४२-४४
८ वही ४-४०
९ श्रीमद् भगवद् गीता पृष्ट ६८,
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(प्रथम भाग ) का
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