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है । (३२)
- जैन भूगोल के अनुसार सात क्षेत्र है और इस प्रकार ये पर्वत इलाघृत क्षेत्र में है। उन्हे बांटने वाले छ पर्वत है भरत, हैमवत, जैन भूगोल के अनुसार इन सभी क्षेत्रों हरिवर्ष, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत के मध्य में इलावृत की तरह विदेह क्षेत्र ये सात क्षेत्र है । (३१)
हैं, जिसमें सुमेरु के दक्षिण और उत्तर में
निषध व नील पर्वतस्पशी', सौमनस्य, इन्हे बांटने वाले हिमवन्, महाहिमवन्,
विद्युतप्रभ गंधमादन व माल्यवान नाम के दो निषध, नील रूक्मी और शिखरी ये छ पर्वत
दो गजद ताकार पर्वत है, इसे एक चित्र द्वारा
इस प्रकार दर्शाया जा सकता है। (दे. चित्र भागवत और विष्णुपुराण के अनुसार
सं०८) मेरुपर्वत की आधारभूत युतियों के समान
इस प्रकार हम देखते है कि न केवल बने हुए चार पर्वत है जिन पर एक एक जम्बूद्वीप संबंधी क्षेत्रों और पर्वतों की संख्या विशाल वृक्ष है पर्वतों और वृक्षों के नामों में समानता है अपितु उनके नामों में भी में थोडा अंतर है।
समानता है। पर्वतो में विष्णुपुराण जिसे
हेमकूट कहता है तत्त्वार्थ सूत्र उसे महाभागवत के अनुसार मन्दर, मेरूमन्दर, हिमवान्, विष्णुपुराण जिसे श्वेत कहता है सुपार्श्व और कुकुद, ये चार पर्वत है तथा तत्त्वार्थ सूत्र उसे रुक्मी और विष्णुपुराण के शृंगी इनके ऊपर आम, जामून और वट के वृक्ष है। को तत्वार्थ सूत्र शिखरी (शिखरी शृंगी का ही
विष्णुपुराण के अनुसार मन्दर, गंधमादन, अपभ्रंश रुप माना जाना चाहिये) कहता विपुल और सुपाव पर्वत है तथा इन पर है, विष्णुपुराण भारत को तत्वार्थ सूत्र क्रमशः कदंव, जम्बु पीपल और वट के वृक्ष भरत किंपुरुष को हेमवत, हरिवष को है । (३३)
हरि, इलावृत. को विदेह, रम्थकको रम्यक,
ऐरावत
हैरण्यवतशिखरी
-रुक्मि
रम्यक
17 नील
जम्बूद्वीप
पवान मात्य
समेत
(जैन)
वेपन्माल
सौमनस्म/
+निषष
हरि
हेमवत भरत
-महाहिमवन -हिमवन
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