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८०००० यो० विस्तृत सीता समुद्र है, जो मेरु सुमेरु पर्यत है जो एक लाख योजन विस्तार को चारो ओर से वेष्टित करके स्थित है। वाला है । इसका एक हजार योजन भाग इसके आगे ४०००० यो० विस्तृत युगन्धर तो पृथ्वीतल के नीचे है। शेष ९९ हजार पर्वत वलयाकार स्थित है । आगे भी इसी योजन भाग पृथ्वी तल से उपर है । (२२) प्रकार एक एक समुद्र के अन्तराल से उत्तरो- विष्णु पुराण के अनुसार सुमेरु की त्तर आधे आधे विस्तार से युक्त क्रमशः ऊँचाई ८४००० योजन है । भागवत के अनुसार ईषाधर; खदिरक, सुदर्शन, अश्ववर्ण, विनतक यह स्वर्णमय पर्वत एक लाख योजन है । और निमिधर पर्वत है । (दे. चित्र ५.) जो सोलह हजार योजन पृथ्वी के अन्दर अन्त में लोहमय चक्रवाल पर्वत है । (२०) धंसा हुआ है और ८४००० यो. पृथ्वी के
निमिधर और चक्रवाल पर्वतों के मध्य में बाहर । (२३) ... जो समुद्र है उसमें चार द्वीप है (देखिये अभिधर्मकोश के अनुसार सुमेरु की चित्र ६) मेरु पर्वत की पूर्व दिशा में अर्धचन्द्रा- ॐवाई एक लाख ६० हजार योजन है जिसमें कार पूर्व विदेह, दक्षिण दिशा में शर्कराकार ८०००० योजन तो जल में निमग्न है और जम्बूद्वीप, पश्चिम दिशा में मण्डलाकार अवर ८०००० योजन जल से उर्ध्व है । (२४) गोदानीय, और उत्तर में समचतुष्कोण उत्तर जैन परम्परानुसार मध्य लोक में एक कुरु है । (२०)
लाख योजन विस्तारवाला जम्बूद्वीप है । उसे दो द्वीपो के बीच में दो दो अन्तद्वीप है। घेरकर २ लाख योजन विस्तारवाला लवणसमुद्र, जम्बूद्वीप के पूर्व अन्तद्वीप में राक्षसों का उसे घेरकर ४ लाख योजन विस्तार वाला घातकी
और शेष में मनुष्यों का निवास है । (२१) द्वीप, उसे घेरकर ८ लाख योजन विस्तार (दखिये चित्र ६)
वाला कालोदधि समुद्र, ऊसे पेरकर १६ लाख कुछ भी हो इस बात में सभी एक मत योजन विस्तारवाला पुष्कर वरदीप है । है किं पृथ्वी को घेरकर द्वीप और समुद्र इसी प्रकार आगे के द्वीप तथा समुद्र स्थित है और ये सभी दूने दूने विस्तार- दुगुने दुगुने होते गये है । (दे. चित्र. ४) वाले है।
___पुष्करवर द्वीप के ठीक बीचों बीच जैन परम्परानुसार भी समुद्र दूध घी मानुषोत्तर पर्वत है। ऐसी दशा में यह द्वीप आदि के है, पाँचवा समुद्र क्षीरोदधि है दो भागों में विभक्त हो जाता है। मनुष्यों की जिसका जल दूध के समान है। तीर्थ कर का गति पुष्करवर द्वीप के प्रथम आधे भाग तक ही है अमिषेक इसी के जल से होता है । (प्राड् मानुषोत्तरान् मनुष्याः) (२५) ___ जैन और शैदिक दोनों मान्यताओं के भागवत के अनुसार पुष्करवरदीप में स्वर्णमय अनुसार सभी द्वीपों और समुद्रों के बीच कमल होने से इसका नाम पुष्करद्वीप है में जम्बूद्वीप है और उसके बीचों बीच इसके बीचों बीच मानुषोत्तर नामका पर्वत
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