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मानव ने चन्द्र धरातल पर अपना पैर रखा। उदादाय हि परस्मै पृथिव्यै
जीवमासीत् तदू चन्द्रमसि न्यदधत् । किन्तु सृष्टि का इतिहास इतना प्राचीन और अज्ञेय हे कि कोई ऐसा निश्चित रुपसे
- श० ब्रा० १-२-५-१९ नहीं कह सकता कि यह घटना कभी घटी (ख) स यदास्मै पृथिव्या अनामृत देव ही नहो ।
यजनमासीत् तत् चन्द्रमसि न्यदधत् ।
तदेतच्चन्द्रमसि कृष्णाम् । तस्मादाहुः ____प्राचीन काल में रावणने चन्द्रलोक में जाकर
चन्द्रमस्यै पृथिव्यौ देवयजनमिति । वहाँ बाणों का प्रयोग किया था ।
श० वा० १-७-५-१८ दर्गा सप्तशती में लिखा है कि महिषासुरने इन श्रुतियों का सारांश यह है कि : सूर्यादिदेवों का अधिकार स्वयं ले लिया था ।
"पूर्वकाल में किसी विशेष-युद्ध में इस सूर्य चन्द्र ग्न्यनिलेन्दूनां यमस्य वरुणस्य च।
' पृथ्वीका बहुत बड़ा भाग जो जीवपोषक था, अन्येषां चाधिकारान् स स्वयमेवा धितिष्ठति ॥ इसे पूर्व मनीषियोंने चन्द्रलोक में ले जाकर
तलवकार आदि सामवेदीय ब्राह्मण-ग्रन्थो स्थापित किया । के आधार पर मनुष्य का चन्द्र के साथ चन्द्र में दिखाई पडनेवाला काला भाग सीधा सम्बन्ध था
पृथिवी का अंग है ।" आदित्य एष देवलोकः चन्द्रमा मनुष्यलोकः। इस प्रकार चन्द्रमा से मानव के सम्बन्ध
तलव-३-१३-१२ का संकेत स्पष्ट ही मिलता है । शास्त्रीय-आधारों पर यह स्पष्ट कहा जा इस के साथ ही चन्द्रमा में पार्थिव अंग की सकता है कि
सिद्धि तथा उसका जीवनदायकत्व भी सिद्ध - "भारतीय मानव चन्द्रसे अपरिचित नहीं ।
होता है। रहा है।"
चन्द्र और प्राणी इस मान्यता के अनुसार चन्द्र पर जो ।
चन्द्रमा पर प्राणी हैं या नहीं ? इस कृष्णभाग है, वह पृथ्वी का है।
विषय में अन्वेषण चल रहा है।
___आधुनिक-वैज्ञानिकों को वहाँ कुछ नही इस विषय में निम्न श्रुतियां पृष्टव्य है। मिला और कोई प्राणी नहीं मिला । इस से (क) पुरा करस्य विसृपो विरस्यन् उमादाय पृथिवीं अनुमान लयाया गया कि वहाँ कोई जीव या जीवदानु यो मेश्यश्चन्द्रमसि स्वधामिः । जीवन नहीं है ।
यजुर्वेद १-२८ किंतु जीवविज्ञान के मौलिकरूप को इस मन्त्र की व्याख्या करता हुआ शतपथ समझे बिना कुछ कहना साहसमात्र ही ब्राह्मण कहता है कि
होता है।
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