________________
शास्त्रीय-परम्परा के अनुसार पृथ्वी से जो अभी तक प्राप्त साधनों के अनुसार जीव पितरों के रूप में चन्द्रलोक में जाते हैं वैज्ञानिकों का यही निर्णय रहा है किउनका शरीर स्थूल न हो कर सूक्ष्म होता चन्द्रमा (!) में जल नहीं है। है, जिस के अठारह अवयव होते है। और वे
यद्यपि चन्द्रमा (!) पर विस्तृत नदी-प्रवाहों इतने सूक्ष्म होते हैं जिन्हें इन चमें-चक्षुओं के चित्र उनके सामने आये है, परन्तु उनके से देखा नहीं जा सकता ।
आधार पर अभी तक कोई निर्णयात्मक सूचना ___कहा जा सकता है कि जब सशरीर नहीं उपलब्ध हो सकी है। . मानव चन्द्र (!) धरातल पर उतर गया तो भारतीय-शास्त्रों के अनुसार चन्द्रमा में इस प्रकार की बाते श्रद्धेय कैसे हो ?
जल का अस्तित्व प्रमाणित होता है । जैसेउत्तर में निवेदन है कि
१ चन्द्रमा अप्स्वन्तरा सुपर्णो धावते दिवि । जो चन्द्रयात्री चन्द्रलोक (!) में गये
___ ऋग्वेद १-१०५-१ है, वे उस पृथिवी के वातावरण से परिबेष्टित
२ आपो हि सोमस्य लोक ।। होकर विशेष प्रकार के परिधान को धारण ।
शतपथ ब्राह्मण ४-४-५-७१ कर के ही गये थे और उसी रुप में वहाँ
३ चन्द्रमास्तु स्मृतः सोमः तस्यात्मा ओषधिगणः कुछ दूर चले थे। . विशुद्ध-चन्द्रलोकीय वातावरण में उन की
-वायु २७-३६ वहाँ की स्थिति अभी सुदर-काल तक परी- ४ अम्मयः चन्द्रमाःस्मृतः । वायु २८-४८ क्षणीय ही रहेगी।
सोमाधारं जगत् सर्वमेतत् तथ्य प्रकीर्तितम् । ___ चन्द्रमा की किरणमें हम एक विशेष प्रकार सूर्यात् उष्मा प्रर्वतते, के तत्त्व को प्राप्त करते हैं जो अन्न, फल आदि
सोमातू शीत प्रवर्तते ॥ की पुष्टि एवं सरसता आदि विशेषतादि शीतोष्णवीयौ हावे तौ युक्तौ धारयति सम्पन्न होती है। उन्हें देखते हुए यह निश्चय
जगत् ॥ ५१-१८-१९ पूर्बक कहा जा सकता है कि
६ धनतोगात्मक तत्र मण्डलं शशिनः स्मृतम् । "चन्द्रमा में जीवनदायक तत्त्व हैं।"
घनतेजोमयं शुक्लं मण्डल चन्द्रमा के तैजस होने के कारण वहाँ का
भास्करस्य तु ॥ ५२-५६ शरीर भी उसी के अनुसार होने का संकेत
पठ्यते चाग्निरादित्यः उदकश्चन्द्रमाः स्मृतः। मिलता है।
न्यायसिद्धान्तमुक्तावलीकार ने तेजो-निरुपणचन्द्र और जल
प्रसग में उष्णस्पर्शवान् को तेज बता कर यह चन्द्रमा पर जल है बा नही ? यह भी शंका की है किआधुनिक-वैज्ञानिकों के लिये महत्वपूर्ण अन्वे- 'उष्णस्पर्शवत्तेज' : यह तेज का लक्षण षणीय विषय है ।
चन्द्गकिरणों में अव्याप्त हो रहा ।
४
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org