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चंद्र पर सूर्य अनेक दिशाओं से उदित होता हुआ दिखाई देता है ।
दक्षिणायन भर्गस्थो यदा भवति रश्मिवान् । तथा सर्व ग्रहाणां स सूर्योऽधस्तात् प्रसर्पति ॥ विस्तीर्ण मण्डलं कृत्वा तस्योध्व चरते शशी ॥ वायु ३५ - ९५
चन्द्र धरातल पर मानव के उतरने से पूर्व ही बीकानेर की चन्द्रानुसन्धानपरिषदने एक विज्ञप्त निकाल कर रूस और अमेरिका आदि देशो के वैज्ञानिकों को यह सूचित कर दिया था कि
"चन्द्र विषात्म कीटाणुओं से सर्वथा शून्य
है ।
उसका सोमतत्व जीवनपोषक एवं अन्न वर्द्धन की क्षमता रखता है ।"
चन्द्रमा के विषय में निम्नलिखित शास्त्रीय बातें ध्यातव्य है—
१ चन्द्रमा सूर्य से प्रकाशित है । चन्द्र स्वयं प्रकाशमान नहीं हैं, वह सूर्य से ही प्रकाशित होता है । (क) आदित्यतोऽस्य दीप्ति भवति ।
अपितु
निरुक्त
२-६-३
(ख) स सूर्येण रोचते ।
ऋ९-२-६
(ग) सुषुम्णः सूर्य रश्मिश्यचन्द्रमा गन्धर्व : १८।४० आपूरयन् सुषुम्नेन भागं भागमहः क्रमात् । सुषुम्नाप्यायमानस्य शुक्ला वर्धन्ति वैं कलाः । इत्येव सूर्यवीर्येण चन्द्रस्याप्यादिता तनुः । वायु ५२-५६-५०
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प्रीणाति देवानमृतेन सूर्य: सोमं सुषुम्नेन विवर्धयित्वा ।
२३
५२-३६
पृथ्वी के समान ही चन्द्र पर सूर्यप्रकाश से दिन रात होते हे ।
इस बात को स्पष्ट करते हुए सिद्धान्त शिरोमणिकार कहेते हे -
दिने दिनेशस्य यतोत्र दर्शने, तमो तमोहन्तुरदर्शने सति, पृष्ठगानां निशं यथा नृणां. तथा पितृणीं शशिपृष्ठवासिनाम् ॥ अन्तर इतना ही है कि चन्द्र अहोरात्र १५-१५ तिथिमान के होते हैं ।
इन्द्र 'डोद्धे स्थितास्ते पितरो रविम् । उचित कृष्णपक्ष पश्यन्त्यस्त सिताध के (सूर्यसिद्धान्त)
चन्द्रका रंग
प्रकाश - अन्धकार, हवा दिन-रात के परिणाम के समान चन्द्रमाके वर्ण के सम्बन्धमें भारतीय शास्त्रो में यह स्पष्ट घोषित किया गया हे कि -
" चन्द्र जिस समय भस्म सर्दश वाला रुक्ष, अरुणवर्ण, किरणहीन हो, श्याम वर्ण हो, स्फुरित यो कम्पायमान हो, तो वह युद्ध, रोग एवं भयका कारण होता है । भस्मनिभः शीतकरः
परुषोरुणमूर्तिः, किरणैः परिहीन
: 1
फुटव
बृहत्संहिता ॥ ४।२९
श्यामतनुः स्फुरितः क्षुत्समरीमय चौरभयाय
चन्द्र और मानव
आजकी धारणा के अनुसार सृष्टि के इतिहास में यह पहला अवसर हैं जब साहसी
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