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वाला ब्राह्मण मकोडों, पतङ्गो, मल खाने है, किन्तु ऋग्वेद में एक स्थल पर आया है वाले पक्षियों, मांस-भक्षी पशुओं के विभिन्न कि ईश्वर पिताओं के पापों के कारण उनके जन्मों को पाता है । ब्राह्मण के सोने को उनके पुत्रों को दळित कर सकता है । भगचुराने वाला ब्राह्मण मकडों, सो, छिपकलियों, वद्गीता में कहा गया है-कि नेत्र, मन, वचन जलचरों और निशाचर योनियों में सैकडो और कर्म इन चार प्रकारों से व्यक्ति जो कुछ बार जन्म ग्रहण करता है । गुरु के पर्यक करता है वह वैसा ही फल पाता है। दूसरे को अपवित्र करने वाला, घास, गुल्मां, द्वारा किये गये अच्छे या बुरे कर्म के फल लताओं, मांस-भक्षी पशुओं, फणिधरों तथा को अन्य व्यक्ति नहीं भोगता, व्यक्ति वही व्याघ्र जैसे क्रूर पशुओं की योनियों में सैकडों पाता है जो स्वयं करता है । (१५) बार जन्म ग्रहण करते हैं। लोगों की हत्या गौतम धर्मसूत्र में कहा गया है कि राजा करने वाले व्यक्ति कच्चा मांस खाने वाले को शास्त्र में वर्णित-विधियों से वों एवं आश्रमों योनि में जन्म लेते हैं। निषिद्ध भोजन करने की रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि राजा को उनके वाला व्यक्ति कीट होता है, जो चोरी करते द्वारा किये गये धर्म का अंश प्राप्त होता है । है वे अपनी जाति के जीवों को खा डालते है। मनुस्मृति में कहा गया है कि वह राजा जो जो लोग हीन-जाति के नाहियों के साथ प्रजा की रक्षा में तत्पर रहता है, प्रजा के संभोग करते है, वे प्रेत होते है, दसरों की आध्यात्मिक पुण्य का छठा भाग प्राप्त करता पत्नीयों के साथ सम्भोग करने वाला, है, यदि ऐसा नहीं करता है तो उनके पाप ब्राह्मणों की सम्पत्ति का अपहरण करने वाला छठा भाग प्राप्त करता है । शाकुन्तल में ब्रह्मराक्षस होता है, अन्न चराने वाला ब्राह्मण भी इसी प्रकार का वर्णन हुआ है । (१६) चूहा होता है, मध चराने वाला डंक मारने पति-पत्नी के विषय में धर्मशास्त्रों में वाला जीव होता है, मीठा रस चुराने वाला वा
वर्णित विचारों से भी पुनर्जन्म विषयक धारकुत्ते की योनि में जन्म लेता है । इसी प्रकार
___णाओं की पुष्टि होती है । मनुस्मृति में कहा जो नारियां उपरोक्त प्रकार की चोरी करती गया है-पति से मिथ्या व्यवहार करके पत्नी है, वे भी पातकी होती है। इस प्रकार स्पष्ट इस जीवन में तो निन्दा का पात्र बनती ही हा जाता है कि पाप-कर्मा को भोगने के हैं, मरणोपरान्त वह लोमडी की योनि में जन्म लिए व्यक्ति को पुनर्जन्म ग्रहण करना
लेती है, और कुष्ठ रोग जैसे भयंकर रोग पड़ता है।
से ग्रसित होती है । मन, वचन एवं कर्म में
संयमित नारी अपने आचरण द्वारा इस जीवन कर्म का सिद्धान्त यह स्पष्ट करता है में सर्वोच्च यश अर्जन करती है और परलोक कि सद् और असद् कर्म एक दूसरे पर में पति के साथ निवास करती है । (१७) स्थानान्तरित नहीं हो सकते और न कोई भट्ट वामदेव कृत 'जन्म-मरण विचार' में, व्यक्ति किसी अन्य के पापों को भोग सकता जो काश्मीर के शैव-सम्प्रदाय से सम्बन्धित
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