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तप और वीर्य स्वरूप है । अपने परिणामों ६. (क) समयसार-५०-से ५५ षडदर्शनके कारण आत्मा विविध-पर्यायों एवं विविध
समुच्चय-पृ. ३३७ रूपों को प्राप्त करता है । विकारीभावों से ७. (क) उत्तराध्ययन-णाणं च दंसणं चेव, युक्त होकर यह आत्मा शुभ और अशुभ . चरित्तं च तवो तहा । वीरियं परिणामों को कर्ता है । विशुद्ध-परिणामों के
उवओगो य एवं जीवस्स लक्खणम् कारण विशुद्ध ज्ञान-स्वरूप है, जन्म-मृत्यु
(ख) स्याद्वादमंजरी से रहित है और नियम से सिद्धत्व को
८. अर्हत्गीता-मेघविजयगणी पृ. १९७ प्राप्त कर उर्ध्वगमन को प्राप्त होने वाला है. ___ आत्मा अनादि-निधन, सादि, सांत, अनंत १०. (क) तत्वसार-१७, (ख) उपयोगो लक्षणम् एवं विविध भावों से युक्त है। चैतन्यलक्षण
तत्वासू. २/८ के कारण अनादि निधन है । औदयिक और ११. कर्मग्रन्थ पृ: २२१ शमिक, क्षायोपशमिक, भाव को अपेक्षा सादि
शाद १२. द्रव्यसंग्रह गा. २ सान्त, क्षायिकभाव की अपेक्षा सादि-अनंत
१३. समयसार गा. ४९-अरसमरूवमगंध अव्वत्तं है। सत्ता-स्वरूप की अपेक्षा अनंत हैं, विनाश
चेदणागुणसमिद्धं । रहित है अथवा द्रव्यसंख्या की अपेक्षा अनंत है,
१४. (क) द्रव्यसंग्रह पृ. टी. १४ और व्यवहार की अपेक्षा औदयिक, औपशमिक,
(ख) पञ्चास्तिकाय गा. ३८ क्षायिक, क्षायोपशमिक तथा पारिणामिक भावों की प्रधानता लिए प्रवर्तमान है ।43
१५. (क) सिद्धसेन-सन्मति तर्क २/२०
(ख) जिनवल्लभगणी कर्मग्रन्थ-पृ. २२१ संदर्भ :
१६. (क) आदिपुराण पर्व-२४/४००-१०२ १. कुन्दकुन्दभारती पृ. ११८
(ख) स उपयोगो द्विविधः साकारोऽनाकार २. आचारांग ५/१७१
___ श्च (तत्वा-भा २/९ ३. (अ) समयसार अ० ३०-५५ (ब) १७. वही. २४/१००-१०२ आचारांग, (ग) षइदर्शनसमुच्चध पृ. ३३७
१८. द्रव्यसंग्रह गा. २ आ हरिभद्र
१९. पञ्चास्तिकाय गा. ९९ ४. जिनसेन-अदिपुराण-पर्व. २४/श्लो. १०० २०. आदिपुराण २०/९२ से १०८
२१. समयसार गा. १०७ ५. व्यसंग्रह बृ. गा. २
२२. वही गा. ८३
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