Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 8
________________ द्वितीय दौर शंका ६ उपादानकी कार्यरूप परिण तिमें निमित्तकारण सहायक होता है या नहीं ? प्रतिशंका २ विचारणीय तत्त्व यह है कि क्या उपादानको कार्यरूप परतिमें निमित्त कारण सहायक होता है या नहीं अर्थात् कार्यकी उत्पत्ति सामग्री से अर्थात् उपादान और निमित्त कारणोंसे होती है या वेवल नपादान कारणसे । कहीं-कहीं जैनाचार्याने अन्तरंग बारणा और बहिरंग कारणका भी उल्लेख किया है। अन्तरंग कारणसे तात्पर्य काययोग्य द्रव्यशक्तिसे है तथा बहिरंगसे मतलब बलाधान में सहायकसे है। इन्हीं को उपादान और निमित्त कारण भी कहते है। जन-जन जना न्याना में अमी है सब-जन निमित्तको सहायतासे ही आती है। जैसे जब-जरे हम देखते हैं अर्थात् हमारी लब्धिरूप चेतना उपयोगरूप होती है तब यह कार्य नेन्द्रियकी सहायतासे ही होता है। यदि इसकी मनोवैज्ञानिक व्याख्या करें तो कहना होगा कि किसी भी वस्तुको देखते समय उस वस्तुवा उल्टा फोटू हमागे पुतली ( रेवटीना ) पर पड़ता है और इसमें जो हलन-चलन होता है, उससे हमारी सुसुप्त चेतना जागती है और उम पदार्थको जानती है । यहाँ दो प्रकारके परिणमन होते है-एक भौतिक और दूसरे मानसिक ( आत्मिक )1 पृतली पर. अक्स उसका भौतिक परिणमन है और उसके बादका अनुकम्पन और जानना मासिक ( आत्मिक) परिणमन है । यदि भौतिक परिणमन म होने तो तीन कालमें भी आत्मिक परिणमन अर्थात चेतना लब्धिसे उपयोगरूप में नहीं आयेगी | इस ही को बलापान निमित्त कहते हैं। महर्षि पूज्यपादने उपयोगका लक्षण निम्न प्रकार लिखा हैउमयनिमित्तवशावुत्पथमानश्चैतन्यानुविधायी परिणाम उपयोगः । - सर्वा० सि. २.८ महषि अकलंकने भी लिखा हैबायाभ्यन्तरहेतुद्वयसन्निधाने यथासम्भवमुपलब्धचैतन्यानुविधायी परिणाम उपयोगः । -तत्वार्थरा०३८ इसी प्रकार क्रियाका लक्षण करते हुए महर्षि अकलंबने लिखा हैउमयनिमिसापक्षः पर्यायविशेषो द्वन्यस्य देशान्तरमाप्तिहनुः क्रिया । अभ्यन्तर क्रियापरिणामशमियुक्त द्रव्यं । श्राह्यच नोदनामिघातायपंश्योत्पद्यमानः पर्यायविशेष: म्यस्य देशान्तरप्राप्तिहतुः क्रियेप्युपदिश्यते । --तरवा. वा०५-७ इस विधेचनसे स्पष्ट है कि पदार्थमें क्रियाकी शक्ति है और वह रहेगी, किन्तु पदार्थ क्रिया तब हो करेगा जब बहिरंग कारण मिलेंगे, जब तक बहिरंग कारण नहीं मिलेंगे वह क्रिया नहीं कर सकता, अर्थात्

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