Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ ८०१ विषयसूची तृतीय दौर ६९४-६९८ ८. जीव परतन्त्र क्यों है इसका सांगोपांग प्रतिशंका ३ विचार प्रतिशंका ३ का समाधान | १. समग्र आईनप्रवचन प्रमाण है ७७५ १०. व्यवहार वन, तप आदि मोक्षके साक्षात् १५. शंका-समाधान ६९९-७११ साधक नहीं ७७८ प्रथम दौर ६९९ ११. प्रकृस में जान पदका अर्थ शंका १५ और उसका समाधान १२, सम्मयत्य प्राप्तिके उत्कृष्ट कालका विचार ७८२ द्वितीय दौर ६९९-७०२ १३. प्रतिनियत कार्य प्रतिनियत कालमें ही प्रतिशंका २ ६६९-७०१ होता है ७८८ प्रतिशंका २ का समाधान ७०१-७०२ १४. प्रकृतमें विििात आलम्बनके ग्रहण त्यागतृतीय दौर ७०२-७११ का तात्पर्य ७८८ प्रतिशंका ३ हामा सुनाता ७०२-७०५ ७८६ प्रतिशंका ३ का समाधान ७०६-७११ १६. माध्य-साधनविचार १७. उपयोग विचार ७९५ १६. शंका-समाधान ७१२-८०६ १८. समरामार गाया २७२ का भाशय प्रथम दौर ७१२-७१६ १७. शंका-समाधान ८०७-८४६ दांका १६ और उसका समाधान ७१२-७१६ द्वितीय दौर ७१६-७३२ . प्रथम दौर ८०७-८०८ प्रतिशंका २ शंका १७ और उसका ममाधान ७१६-७२३ २०७-८०८ प्रतिशंका २ का समाधान ७२-७३२ द्वितीय दौर ८०८-८१४ तृतीय दौर ७३२-८०६ प्रतिशंका २ ८०८-८१२ प्रतिशंका ३ ६३२-७५३ प्रतिशंका २ का समाधान ८१२-८१४ १. निश्चय एकान्त कथन ७५२ तृतीय दौर ८१५-८४६ प्रतिशंका ३ का समाधान ७५३-८०६ | प्रतिशंका ३ ८१५-२६ १. प्रथम द्वितीय दोरका उपसंहार ७५३ प्रतिशंका ३ का समाधान ८२६-८४६ २. दो प्रश्न और उनका समाधान १, पुनः स्पष्टीकरण ८३० ३. निश्चय और व्यवहारनयके विषय में २. व्यवहारपरके विषय में विशेष स्पष्टीकरण ८३. स्पष्ट खुलासा ३. 'मुख्यामा इत्यादि वचन का स्पष्टीकरण ८३३ ४. समयसार गाया १४३ का यथार्थ तात्पर्य ७६२ ।। ४. 'बंधे न मोक्खहे' गायाका अर्थ ८३४ ५. विविध विषयों का स्पष्टीकरण ५. तत्त्वाश्लोकवातिकके एक प्रमाणका ६. बन्ध और मोक्षका नयदृष्टिसे विचार स्पष्टीकरण ८३५ ७. एकान्तका आग्रह ठीक नहीं अपर पक्षसे निवेदन ०४५ our and ७७० ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 476