Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2 Author(s): Fulchandra Jain Shastri Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 4
________________ ६ शंका-समाधान ३७७-४९६ प्रथम दौर ३७७ शंका ६ और उसका समाधान प्रतिशंका २ प्रति प्रतिशंका ३ द्वितीय दौर ३७८-३८७ रामाधार तृतीय दौर ३८७-४९६ १. कुछ विचारणीय बातें ४. द्रव्यप्रत्यासत्तिरूप कारणताका निषेध ५. बाह्य सामग्री दूसरे के कार्यका यथार्थ कारण नहीं विषय-सूची प्रतिशंका ३ का समाधान १. व्यवहारनय और उसका विषय २. सम्यक् निश्चयनय और उसका विषय ३. निश्चयन में व्यवहाररूप अर्थ की सापेक्षताका निषेष ३७८-३८३ ३८३-३८० ३७७ ६. वस्त्रार्थस्लोवातिके एस्लेखका तात्पर्य ७. उपचार पदके अर्थका स्पष्टीकरण ८. बन्ध-मोक्षपस्या E. जगतका प्रत्येक परिक्रमानुपाती है १०. परिणायाभिमुख्य पदका अर्थ ११. उपादान सुनिश्चित लक्षण यथार्थ है १२. परमाणु योग्यता माविका विचार ४२९-४६६ ४३० ४३३ ४३५ ४३५ प्रतिशंका ३ ३८७ - ४२८ प्रतिशंका ३ का बनावान ४२७ ४४२ ४४४ ४४५ ४४७ *** ४५६ ४५९ ४६१ ७. शंका-समाधान ४९७-५१८ प्रथम दौर ४९७ ४९९ ४७४ १३. असद्भूत पवारनयका स्पष्टीकरण १४. कुछ विचारणीय बातोंका क्रमश: खुलासा ४९२ शंका ७ और उसका समाधान द्वितीय दौर ४९९-५०२ प्रतिशंका २ प्रतिशंका २ का समाधान ८. तृतीय दौर ५०२-१९८ शंका ८ का समाधान द्वितीय दौर ५२० - ५२६ शंका-समाधान ५१९-५४८ प्रथम दौर ५१२-५२० प्रतिशंका २ प्रतिशंका २ का समाधान तृतीय दौर ५२७-५४८ प्रतियांका प्रतिशंका ३ का समाधान १. केवलो जिनके साथ दिव्यध्वनिका सम्बन्ध २. दिव्यध्वनिको प्रामाणिकता ३. आगमप्रमाणोंका स्पष्टीकरण ४९६-४६९ ४६६ - ५०० ५००- ५०२ शंका है और उसका समाचान ५०२ - ५०६ ५१०-११८ ५१६-४२० ५२०-५२२ ५२३-५२६ ५२७-५३४ ५३४- ५४८ ९. शंका-समाधान ६४९-६०८ प्रथम दौर ५४२-५५१ ५३५ ५.३७ ५४३ ५४९-५५१Page Navigation
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