Book Title: Jaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 7
________________ प्रथम दौर : १ ; शंका ६ उपादानकी कार्यरूप परिणति में निमित्त कारण सहायक होता है या नहीं ? समाधान १ प्रकृत में निमित्तकारण और सहायक इन दोनोंका अभिप्राय एक ही है। इसलिये उपादान. की कार्यरूप परिणति में अन्य द्रव्यको विविक्षित पर्याय सहायक होता है यह कहने पर उसका तात्पर्य यहो है कि उपादानकी कार्यरूप परिणति में अन्य द्रव्यको विविक्षित पर्याय निमित्त कारण होती है । परन्तु यहां पर यह स्पष्टरूप से समझाना चाहिये कि उनकी कार्यरूप परिणतिमें अन्य द्रवकी वित्रिति पर्यायको आगम में जो निमित्त कारण स्वीकार किया है की यह वहाँ पर व्यवहारनयकी अपेक्षा ही स्वीकार किया है, निश्चयनयकी ( पर्यायार्थिक निश्चयनयकी ) अपेक्षा नहीं। इसी अभिप्रायको विस्तार के साथ विवेचन द्वारा स्पष्ट करते हुए अन्त में निष्कर्षरूप में श्री तत्त्वार्थवलोकवतिक में इन शब्दों में स्वीकार किया है— कथमपि तनिश्चयनयात् सर्वस्य विस्त्रसोत्पादव्ययधौन्यव्यवस्थितेः । व्यवहारनयादेव उत्पादादीनां सहेतुकश्यप्रतीतेः । -अ० ५, सू० १६, ४०४१० किसी भी प्रकार सब द्रक्योंके उत्पाद, व्यय और श्रव्यकी व्यवस्था निश्चयनयसे वित्रता है, व्यवहार नसे ही उत्पादादिक सहेतुक प्रतीत होते हैं। यहाँ पर 'सहेतुकत्वप्रतीतेः' पदमें 'प्रतीतेः' पद ध्यान देने योग्य है । ४८

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