Book Title: Jain Sukta Sandoha
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Kailas Kanchan Bhavsagar Shraman Sangh Seva Trust Mumbai

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Page 13
________________ विविध जैन ग्रंथोद्धृत ॐ नमः श्री पार्श्वनाथाय जैन सूक्तसंदोहः 基強強路蒂等荣錢婆婆準茶茶类茶鉴茶器茶茶继端游弹 मडलानि नमो अरिहंताणं, नमो सिद्वाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सब्यसाहूण। एसो पंच नमुकारो सनपावप्पणासणो मंगलागं च मब्बेमि, पदम हयए मंगलं ॥ तीआणागयवट्टमाणअरिहा, सव्वेवि सुक्खावहा. पाणीण भवियाण संतु सवयं निन्यंकरा ते जिणं । जेसि मेरुगिरिम्मि वासवगणा देवंगया संगया. भत्तीय पर्णनि जम्मणनई सोवणकुम्भाईहिं ॥१॥ पूर्णानन्दमयं मझेदयमयं कैवल्यचिद्ग्मय, रूपातीतमयं स्वरूपरमणं स्वभाविकी श्रीमयम् । ज्ञानोद्योगमयं कृपारसमय स्याद्वादविद्यालयं, श्रीसिद्रावल तीर्थराजमनियं वन्देऽहमादीश्वरम् ॥ २ ॥ वन्दे पुग्धविदेहभूमिमहिलालंकारहारोबम, देवं भत्तिपुरस्सरं जिनवरं सीमंधरं सामियं । पाया जस्स जिणेतरस्स भवभीसंदेहसंतासगा, पोआभा भवसायमि निवडंनाणं जणाणं मया ॥३॥ वीरः सर्वमुरासुरेन्द्रमहितो वीरं नुशाः संश्रिताः, वीरेणाभिहतः म्वकर्मनिचयो, वीराय नित्य नमः । ·张张张张张张张张夢夢差麥茶論茶茶器鉴器器瓷器茶業 For Private And Personal use only

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