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(१६) उत्तर-अंतराय कर्मके क्षय हो जानेके कारणसे सिद्धात्मा भी अनंत शक्ति युक्त हैं अपितु अकृतवीर्य हैं क्योंकि सिद्धात्माके सर्वे कार्य सिद्ध है।
पुनः संसारी जीवोंका दो प्रकारका वीर्य है । जैसेकिवाल (अज्ञान)वीर्य १और पंडित वीर्य वाल वीर्य उसका नाम है जो अज्ञानतापूर्वक उद्यम किया जाय । और पण्डित वीर्य उसको कहते हैं जो ज्ञानपूर्वक परिश्रम हो । सो जिस समय आत्मा अकर्मक होता है तव अकृतवीर्य हो जाता है सो सिद्ध प्रभु अकृतवीर्य हैं ।।।
पूर्वपक्ष:-जिस समय आत्मा सिद्ध गतिको प्राप्त होता है तव ही अकृतवीर्य हो जाता है सो इस कथनसे सिद्ध पद सादि ही सिद्ध हुआ। जब ऐसे है तव जैन मतकी मोक्ष अनादि न रही, अपितु सादि पद युक्त सिद्ध हुई ।
उत्तरपक्ष:-हे भव्य ! यह आपका कथन युक्ति वा सि. द्धान्त बाधित है क्योंकि जैन मतका नाम अनेकान्त मत है सो जब जैन मत संसारको अनादि मानता है तो भला मोक्षपद .सादि युक्त, कैसे मानेगा ? अर्थात् कदापि नही, क्योंकि संसार अनादि अनंत है उसी ही प्रकार मोक्षपद भी अनादि अनंत है, अपितु सिद्धापेक्षा सूत्रकार ऐसे कहते हैं । यथा