Book Title: Jain Siddhanta
Author(s): Atmaram Upadhyaya
Publisher: Jain Sabha Lahor Punjab

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Page 175
________________ वचन दुष्ट सामायिक नापाको भी वशमें ( १६७ ) मण दुप्पणिहाणे वय दुप्पणिहाणे काय दुप्पणिहाणे सामायियस्स अकरणयाय सामायियस्स अणवठियस्स अकरणयाए ॥ ५॥ ___ भापार्थ:-सामायिक व्रतके भी पांच ही अतिचार हैं। जैसे कि-मनसे दुष्ट ध्यान धारण करना १ वचन दुष्ट उच्चारण करना २ और कायाको भी वशमें न करना ३ शक्ति हो. ते हुए सामायिक न करना ४ और सामायिकके कालको विना ही पूर्ण किये पार लेना ५ ॥ यह पांच ही सामायिक व्रतके अतिचार है, सो इनका परित्याग करके शुद्ध सामायिक रूप नियम दोनों समय अर्थात् सन्ध्या समय और प्रातःकाल नियमपूर्वक आसेवन करे और अतिचारोंको कभी भी आसेवन करे नहीं, क्योंकि अतिचाररूप दोष व्रतको कलंकित कर देते हैं। सो यही सामायिक रूप प्रथम शिक्षावत है । फिर द्वितीय शिक्षाबत ग्रहण करे, जैसे कि देशावकाशिक ॥ जो पष्टम व्रतमें पूवादि दिशाओंका प्रमाण किया था उस प्रमाणसे नित्यम् प्रति स्वल्प करते रहना उसीका ही नाम देशा

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