Book Title: Jain Siddhanta
Author(s): Atmaram Upadhyaya
Publisher: Jain Sabha Lahor Punjab

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Page 185
________________ ( १७७ ) · कहीं भी भय नही होता, सत्यवादी सर्व पदार्थों का ज्ञाता होता सत्यवादी हो जीव धर्मके अंगोको पालन कर सक्ता है, सत्यवादीकी ही सब ही लोग प्रतिष्ठा करते हैं और सत्य व्रत सर्व जीवोंकी रक्षा करता है, इस लिये सत्यवादी बनना चाहिये ॥ १४ सपक्खजुत्तो - और सच्चेका ही पक्ष करना क्योंकि न्याय धर्म इसीका ही नाम है कि जो सत्ययुक्त हैं, उनके ही पक्षमें रहना, सत्य और न्यायके साथ वस्तुओं का निर्णय करना, कभी भी असत्य वा अन्याय मार्गमें गमण न करना, न्याय बुद्धि सदैव काल रखनी ॥ • १५ सुदीहदंसी - दीर्घदर्शी होना अर्थात् जो कार्य करने उनके फळाफलको प्रथम ही विचार लेना चाहिये क्योंकि बहुतसे कार्य प्रारंभ में प्रिय लगते हैं पश्चात् उनका फल निकृष्ट होता है, जैसे विवाहादिमें वेश्यानृत प्रारंभ में प्रिय पीछे धन यश वीर्य सवीका नाश करनेवाला होता है क्योंकि जिन बालकोंको उस नृतमें वेश्याकी लग्न लग जाती है वे प्रायः फिर किसीके भी वशमें नही रहते । इसी प्रकार अन्य कार्यों को भी संयोजन कर लेना चाहिये || १६ विसेसण्णू - विशेषज्ञ होना अर्थात् ज्ञानको विशेष करिंके जानना | फिर पदार्थों के फलाफलको विचारना उसमें फिर :

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