Book Title: Jain Siddhanta
Author(s): Atmaram Upadhyaya
Publisher: Jain Sabha Lahor Punjab

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Page 177
________________ ( १६९) .. तृतीय पौषध शिक्षाबत विषय ॥ ____ उपाश्रयमें वा पौषधशालामें तथा स्वच्छ स्थानमें अष्ट यामपर्यन्त एक स्थानमें रहकर उपवास व्रत धारण करना उसका ही नाम पौषध व्रत है। आपितु पौषधोपवासमें अन्न, पाणी, खाधम, स्वाद्यम, इन चारों ही आहारका प्रत्याख्यान होता है, आर ब्रह्मचर्य धारण करा जाता है। अपितु मणि स्वणादिका भी प्रत्याख्यान करना पड़ता है, शरीरके शंगारका भी त्याग होता है,अपितु शस्त्रादि भी पास रक्खे नही जा सक्ते और सावध योगोंका भी नियम होता है । इस प्रकारसे पौषधोपवास व्रत ग्रहण करा जाता है। प्रतिमासमें षट् पौषधोपवास करे तथा शक्ति प्रमाण अवश्य ही धारण करने चाहिये । और पांचो अतिचारोंको भी त्यागना चाहिये-जैसेकि शय्या संस्तारक न प्रतिलेखन किया हो, यदि किया है तो दुष्ट प्रकारसे प्रतिलेखन किया है १ । इसी प्रकार शय्या संस्तारक प्रमार्जित नहीं किया हो, यादे किया है तो दुष्ट प्रकारसे किया गया है:२ । ऐसे ही पूरीषस्थान चा मत्लवनस्थान पतिलेसन न किया हो, यदि किया है तो दुष्ट प्रकारसे किया है ३ । और यदि प्रमार्जित न किया हो तथा किया हो तो दुष्ट प्रकारसे प्रमार्जित किया हो ४ ।

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