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(५८) मूल ॥ सेकित्तं पायवेहम्मे जहा वायसो न तहा पायसो जहा पायसो न तहा वायसो से पाय वेहम्मे ॥ ___ भाषार्थः-(पूर्वपक्षः ) प्रायः वैधर्म्यताका भी उदाहरण दिखलाइये । (उत्तरपक्षः) जैसे काग है तैसे ही हंस नहीं है और जैसे हंस है वैसे काग नहीं है, क्योंकि काक-हंसकी पक्षी होने. पर ही साम्यता है किन्तु गुण कर्म स्वभाव एक नही है, इसीलिये मायः वैधर्म्यत्व उपमान प्रमाण सिद्ध हुआ है।
मल ॥ सेकित्तं सबवेहम्मे २ नत्थि तस्स उवमं तहावितस्स तेणेव उवमं कीरइतं. नीचणं नीचसरिसं कयं दासणं दास सरिसं कयं कागेणं कागसरिसं कयं साणेणं साण सरिसं कयं पाणेणं पाणं सरिसं कयं सत्तं सब वेहम्मे सेत्तं विदम्मोवणीय सेत्तं उवमे ॥
१ वृत्तिमें वैधर्म्यकी उपमा-क्षीर और काकसे लिखी है कि वर्ण आदिकी वैधर्म्यता है।