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किया तो वही समय उस पुरुषकी बैठनेकी क्रियाके निषेधका भी. है इस लिये यह अवक्तव्य धर्म है। इसी प्रकार अस्ति.अवक्तव्य रूप पंचम भंग भी घटमें सिद्ध है क्योंकि वे घट पर गुणकी अपेक्षा नास्तिरूप भी है इस लिये एक समयमें अस्ति अवक्तव्य धर्मवाला है। इसी प्रकार स्यात् नास्ति अवक्तव्यरूप षष्टम भंग भी एक समयकी अपेक्षा सिद्ध है । और स्यादस्ति नास्ति चावक्तव्य रूप सप्तम भंग भी एक समयमें सिद्धरूप है किन्तु वचनगोचर नहीं है क्योंकि एक समयमें अस्ति नास्ति रूप. दोनों भाव विद्यमान हैं परंतु वचनसे अगोचर है अर्थात् कथन मात्र नहीं है ।। इसी प्रकार सर्व द्रव्य अनेकान्त मतमें माने गये हैं और नित्यअनित्य भी भंग इसी प्रकार वन जाते. है । यथा-१ स्यात् नित्य २ स्यात् आनित्य ३ स्यात् नित्यमनित्यम् ४. स्यात् अवक्तव्य ५ स्यात् नित्य अवक्तव्यम् ६ स्यात. अनित्य अवक्तव्यम् ७ स्यात् नित्यमनित्य युगपत् अवक्तव्यम् इत्यादि-।। इन पदार्थोंका पूर्ण स्वरूप जैन सूत्र वा जैन न्यायग्रंथोंसे देख लेवें । और संसारको भी जैन सूत्रोंमें सान्त और अनंतः निम्न प्रकारसे लिखा है । यदुक्तमागमे
एवं खलु मए खंधया चविहे लोए पं.