Book Title: Jain Siddhanta
Author(s): Atmaram Upadhyaya
Publisher: Jain Sabha Lahor Punjab

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Page 158
________________ (१५०) वास्थापनमृषा (धरोड मारना) कूटशाक्षी तथा व्यापारमें स्थूल असत्य और अन्य २ कारणोंमें जिसके भाषण करनेसे प्रतीतका नाश होवे, राज्यसे दंडकी प्राप्ति होवे, और आत्मा पापसे कलंकित हो जाय इत्यादि कारणोंसे असत्यभाषी न होवे, अपितु यह ना समज लिजीये स्थूल ही मृषावादका परित्याग है किन्तु सू. क्ष्मकी आज्ञा है । मित्रवरो! सूक्ष्मकी आज्ञा नही है किन्तु दोष न लग जानेपर स्थूल शब्द ग्रहण किया गया है अर्थात् व्रतमें दोष न लगे | अपितु असत्य सर्वथा ही त्यागनीय है और जीवको सदैवकाल दुःखित रखनेवाला है, संसारचक्रमें परिवर्तन करानेवाला सुकर्मोंका नाशक है, किन्तु सत्य व्रत ही आत्माकी रक्षा करनेवाला है । सो इस व्रतकी रक्षार्थे भी पांच ही अतिचारों वर्जे, जैसेकि- . __सहस्सा नक्खाणे रहस्सा भक्खाण सदारमंतनेय मोसोवएसो कूड लेह करणे ॥ अर्थः-अकस्मात् विना उपयोग भाषण करना १ । तथा गुप्त वाताओंको प्रगट करना अर्थात् जिनके प्रगट करनेसे किसी आत्माको दुःख पहुंचता हो अथवा कामकथादि २। और अपने घरकी वात वा स्वस्तीकी बातें प्रगट करना ३॥

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