Book Title: Jain Siddhanta
Author(s): Atmaram Upadhyaya
Publisher: Jain Sabha Lahor Punjab

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Page 159
________________ ( १५१ ) और अन्य पुरुषोंको असत्य उपदेश करना ४ । तथा असत्य ही लेख लिखने ६ । इन पांच ही अतिचारोंको त्याग करके द्वितीय व्रत शुद्ध ग्रहण करे ॥ तृतीय अनुव्रत विषय ॥ . . थुलाउ अदिन्नादाणाओ वेरमणं॥ तृतीय अनुव्रत स्थूल चोरीका परित्यागरूप है जैसेकि ताला पडि कूची, गांठ छेदन करना, किसीकी भित्ति तोड़ना, मागों में लूटना, डोके मारने क्योंकि यह ऐसा निंदनीय कर्म है कि दोनों लोगोंमें भयाणक दशा करनेवाला है और इसके द्वारा वधकी प्राप्ति होना तो स्वाभाविक वात है । फिर इस कर्म कर्ताओंके दया तो रही नही सक्ति, सब मित्र उसीके ही शत्रु रूप वन जाते हैं और इस कर्मके द्वारा प्राणि अनेक कष्टको भोगते हैं, इस लिये तृतीय व्रतके धारण करनेवाला गृहस्थ पांच अतिचारोंका भी परिहार करे जैसेकि तेणाहमे १ तकर पउगे विरुद्ध रजाश्कम्मे ३ कूड़ तोले कूड़ माणि ४ तप्पमिरूवग . ववहारे ५॥ . .

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