Book Title: Jain Siddhanta
Author(s): Atmaram Upadhyaya
Publisher: Jain Sabha Lahor Punjab

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Page 171
________________ ( १६३ ) हैं उनमें जीवहिंसाका निरोध होनेसे हो जीवोंको निज ध्यानकी ओर शीघ्र ही आकर्षणता हो जाती है क्योंकि - आर्य कर्म के द्वारा आर्य मार्गकी भी शीघ्र प्राप्ति होती है । फिर इस द्वितीय गुणवतको धारण करके तृतीय गुणवतको ग्रहण करे । अथ तृतीय गुणव्रत विषय । सुझ जनों ! तृतीय गुणत्रत अनर्थ दंड है । जो वस्तु स्वग्रहण करनेमें न आवे और किसीके उपकारार्थ भी न हों, निष्कारण जीवों का मर्दन भी हो जाए ऐसे निंदित कर्मोंका अवश्यमेव ही परित्याग करना चाहिए। वे अनर्थ दंडके मुख्य कारण शास्त्रोंमें चार वर्णन किये हैं जैसेकि - ( अवज्झाण चरियं पमायचरियं हिंसपयाणं पावकम्मोवएसं ) आर्त्त ध्यान करना क्योंकि इसके द्वारा महा कर्मोंका वध, चित्तकी अशान्ति, धर्मसे पराङ्मुखता इत्यादि कृत्य होते हैं इस लिए अपने संचित कर्मोंके द्वारा सुख दुःख जीवों को प्राप्त होते हैं, इस प्रकारकी भावनाएं द्वारा आत्माको शान्ति करनी चाहिए । फिर कभी भी प्रमादाचरण न करना चाहिए जैसे घृत तैल जलादिको विना आच्छादन किये रखना, यदि उक्त वस्तुओंमें जीवोंका प्रवेश हो जाए तो फिर उनकी रक्षा होनी कठिन ही नही किन्तु असंभव ही है । फिर

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