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असद्भूत व्यवहार जैसे कि जीवका शरीर है यह अनुपचरित असभूत व्यवहार नय है सो यह नय सर्व पदार्थोंमें संघट्टित है इनके ही द्वारा वस्तुओंका यथार्थ वोध हो सक्ता है क्योंकि यह नय प्रमाण पदार्थों के सद्भावको प्रगट कर देता है ||
॥ अथ सप्त नय दृष्टान्त वर्णनः ॥
अब सात ही नयोंको दृष्टान्तों द्वारा सिद्ध करते हैं, जैसेकि किसीने प्रश्न किया कि सात नयके मतसे जीव किस प्रकारसे सिद्ध होता है तो उसका उत्तर यह है कि सप्त नय जीव द्रव्यको निम्न प्रकारसे मानते हैं, जैसेकि - नैगम नयके मतमें गुणपर्याय युक्त जीव माना है और शरीरमें जो धर्मादि द्रव्य हैं वे भी जीव संज्ञक ही है ५ ॥ संग्रह नयके मतमें असंख्यात प्रदेशरूप जीव द्रव्य माना गया है जिसमें आकाश द्रव्यको वर्जके शेष द्रव्य जीव रूपमें ही माने गये हैं २ ॥ व्यवहार नयके मतसे जिसमें अभिलापा तृष्णा वासना है उसका ही नाम जीव है, इस नयने लेशा योग इन्द्रियें धर्म इत्यादि जो जीवसे भिन्न है इनको भी जीव माना है क्योंकि जीवके सहचारि होनेसे १ ॥ और ऋजु सूत्र नयके मतमें उपयोगयुक्त जीव माना गया है, इसने लेशा योगादिको दूर कर दिया है