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भाषार्थः - श्री भगवान् वर्द्धमान स्वामी स्कंधक संन्यासीको जीवका निम्न प्रकार से स्वरूप वर्णन करते हैं कि हे स्कंधक ! द्रव्यसे एक जीव सान्त है १ । क्षेत्र से असंख्यात प्रदेशरूप जीव असंख्यात प्रदशों पर ही अवगहण हुआ आकाशापेक्षा सान्त है २ | कालसे अनादि अनंत है क्योंकि उत्पत्ति से रहित है इस लिये कालापेक्षा जीव नित्य है ३ । भावसे जीव नित्य अनंत ज्ञान पर्याय, अनंत दर्शन पर्याय, अनंत चारित्र पर्याय, अनंत गुरु लघु पर्याय, अनंत अगुरु लघु पर्याय युक्त अनंत है ४ । सो हे स्कंधक ! द्रव्यसे जीव सान्त, क्षेत्र से भी सान्त, अपितु काल भावसे जीव अनंत है, तथा द्रव्यार्थिक नयापेक्षा जीव अनादि अनंत है, पर्यायार्थिक नयापेक्षा सादि सान्त है, जैसेकि - जीव द्रव्य अनादि अनंत है पर्यायार्थिक नयापेक्षा सादिसान्त है क्योंकि कभी नरक योनिमें जीव चला जाता है: कभी तिर्यग् योनिमें, कभी मनुष्य योनिमें, कभी देव योनिमें । जब पूर्व पर्याय व्यवच्छेद होता है तब नूतन पर्याय उत्पन्न हो जाता है । इसी अपेक्षासे जीव सादि सान्त है तथा जीव चतुर्भग भी युक्त है, यथा जीव द्रव्य स्वगुणापेक्षा वा द्रव्या